SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय ३ - श्रृंगार-काव्य और नायिका-स्वरूप मत्स्य के साहित्य में बहुत कम पाया जाता है। लीलाएं अधिक मिली जैसे कृष्ण की होरी अथवा फाग लीला, रसोई लीला, दान-लीला, माखन चोरी लीला, लीलहारी लीला, वैद्य लीला, चीरहरण लीला । राजदरबारों में भी ऐसी पुस्तकों की पहुँच थी। रस की दृष्टि से इस संपूर्ण काल को शृंगार काल कहा जाता है क्योंकि इस युग में शृंगार रस की कविताएं ही प्रधानरूप में लिखी गईं। मत्स्य का शृंगार साहित्य अश्लोल नहीं हो पाया क्योंकि यहां के राजाओं की रुचि विलासी नहीं थी। शुक्लजी के शब्दों में जब अन्य "राजाओं के लिये कर्मण्यता और वीरता का जीवन बहुत कम रह गया था" तब यहां मत्स्य में राजारों के सामने अनेक समस्याएं रहती थीं जिनमें सबसे बड़ी समस्या थो घर के दम्यु का दमन, राज्य की स्थिति को सुदृढ़ बनाना तथा शत्रु के आक्रमण से बचने की क्षमता रखना । भरतपुर तथा अलवर के राजाओं ने अंग्रेज, मराठे और मुसलमानों से युद्ध ठाने थे। अपने राज्य की वृद्धि का भी उन्हें बराबर ध्यान रहता था। जवाहरसिंहजी के राज्यकाल में तो भरतपुर की सीमा बहुत बढ़ गई थी और यह सब राजा के व्यक्तिगत उत्साह और संगठन के द्वारा हुया था। जवाहरसिंहजी से बलदेवसिंहजी के समय तक वातावरण इसी प्रकार का रहा था ।' इस प्रान्त में पाई गई कुछ पुस्तकों का विवरण दिया जाता है जिनके आधार पर निष्कर्ष निकालते हुए कुछ विशेष बातें कही जा सकेंगी। ___ करौली के राजकुमार रतनपाल भैया का नाम हिन्दी साहित्य के इतिहास में पाता है । 'प्रेम रतनागर" नाम की पुस्तक बहुत प्रसिद्ध रही है इसके रचयिता देवीदास हैं, रतनपालजी उनके आश्रयदाता थे।' प्रस्तावना के रूप में कवि ने लिखा है सदा करौरी देषीये, इन्द्रपुरी को रूप। श्री भैया रतनेस कौं, सेवत बड़ेड़े भूप ।। १ लार्ड लेक के साथ भरतपुर के युद्ध इसी समय में हुए, और अलवर में भी मेवों के प्रांदो लन लगभग इसी समय के पास-पास दबाये गये। इस पुस्तक का निर्माणकाल इस प्रकार है-- संवत सत्रह से बरस, वयालीस रु ध्यार । अश्वनि सुदि तेरस कियो, ग्रंथ विचारि विचारि॥ वैसे से तो यह ग्रंथ हमारे काल में आता भी नहीं परन्तु करौली राज्य का यह ग्रंथ एक परम्परा विशेष की ओर संकेत करता है, जिसका अनुगमन "नेह निदान" आदि ग्रन्थों में हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy