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________________ अध्याय ३ - शृंगार-काव्य प्रेम का बहुत सुन्दर विवेचन किया गया है। एक अन्य पुस्तक, मत्स्य के प्रसिद्ध कवि सोमनाथ द्वारा लिखित, "प्रेमपचीसी" है । यह भी एक शुद्ध प्रेम काव्य है जिसमें प्रेम के संयोग तथा वियोग दोनों पक्ष चित्रित किये गए हैं । इस पुस्तक की एक बहुत भारी विशेषता यह है कि इसमें पंजाबी का समावेश है। साहित्य में यह एक नतन प्रयोग है और सामान्यतः हिन्दी काव्य में इस प्रकार की प्रवृत्ति देखने में नहीं आती। इस ग्रंथ की भाषा से यह तो स्पष्ट हो ही जाता है कि कविवर सोमनाथजी पंजाबी भाषा से सुपरिचित थे किन्तु यह समझ में नहीं पाता कि कवि को इस प्रकार के प्रयोग की आवश्यकता क्यों पड़ी। इस पुस्तक में स्थान-स्थान पर पंजाबी वेश-भूषा से सुसज्जित काव्य का दर्शन होता है। ब्रजभाषा के कवि सोमनाथ में यह प्रवृत्ति पाकर आश्चर्यमिश्रित आनंद होता है। इसका अन्य कोई समाधान न पाकर हम यही मानेंगे कि ये भी कवि का एक प्रयास था जिसमें उसे सफलता मिलो। सोमनाथ ने रीति-ग्रंथ लिखे, प्रबन्ध काव्य रचे, फुटकर कविताएं की, भक्तों के चरित्र और देवतानों की कथाएं लिखीं, संस्कृत पुस्तकों के हिन्दी अनुवाद किए और साथ ही हिन्दी में पंजाबी के समावेश का सुन्दर प्रयोग भी कर डाला। प्रेम पचीसी का प्रारम्भ इस प्रकार होता है"अथ सोमनाथ लिष्यते मंगल मूरति विघन हर सुन्दर त्रिभुवन पाल , षेवट प्रेम समुद्र के जै जै श्री नंदलाल । क्या कोनी तकसीर तुसाढ़ी १ नहिं मुषरा दिषलाव है, राति दिना विन तेंडी२ चरचा मुज, 3 और न भाव है। बेदरदी महबूब गिरंदे क्यों गिरंदगी करता है, सौंमनाथ नेही मैं कैसा दिल अंदर दा परदा है । वे तुम सै महबूब गुर्विदे नैन असाडे उर झे हैं, कौन सके सुरझाई इनोंने पै औरों से सुरझे हैं। बेदरधी पहिचानि दरध नूं भला दिया तैं अरदा है, सौंमनाथ नेही से...... जित्थे 3 पैर धरै तू ज्यानी तित्थै ५ पलक बिछावां ६ मैं, तेंडी कहैं कहानी जिसन हंस हंस कंठ लगावां मैं । तंडा रूप गुविंदे मैडे नैनो नाल ६ विहरदा हैं, सौंमनाथ नेही से...... १ तुसाढ़ी, २ तेंडी, 3 मुजनूं अादि पंजाबी प्रयोग । १ से ६ तक संकेतित शब्दों को देखिए एकदम पंजाबी भाषा है किन्तु खुबी यह है कि इस भाषा को हिन्दी वाले अच्छी तरह से समझ सकते हैं और कोई कठिनाई नहीं होती। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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