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________________ ८६ अध्याय २ - रीति-काव्य १५५ छंदों में अंग से संबंधित ४८ प्रसंगों का वर्णन किया गया है। इसके पश्चात् ५० छंदों में 'षोडस शृगार' का वर्णन भी मिलता है। सिखनख का सम्पूर्ण वर्णन १६१ छंदों में समाप्त हुआ है। इस पुस्तक का समय कवि ने स्वयं ही इस प्रकार दिया है राम निद्धि वसु चंद जुत, कहि संवत सुखदानि । वष कृष्णा तेरसि सुदिन, पूरन ग्रंथ प्रमानि ।' कवि केवल काव्यकार ही नहीं था वरन उत्कृष्ट कोटि का लिपिकार भी था। 'सिखनख' नाम का यह ग्रन्थ स्वयं 'रसग्रानंद' द्वारा ही लिपिबद्ध किया गया था 'सिद्ध श्री जदुवंसावतंस श्री मन्नमहाराजधिराज श्री ब्रजेंद्रबलवंतसिंघ विनोदार्थ रस आनंद विरचते सिखनख संपूर्ण । शुभमस्तु । मिती ज्येष्ठ कृष्णा १३ संवत् १८६३ हस्ताक्षर रस आनन्द के भर्थपुर मध्ये ॥' कवि की कविता का एक उदाहरण देखने से इनकी भाषा और शैली का अाभास मिलता है राजै आज गादी पै वृजेंद्र बलवंतसिंघ , शादी यौ अनंत निस वासर बहाल होहु । नजरि नयाज पेशकश लै नरेसन तें, दूजें देस देसन तें प्रामद रसालु होहु ।। भनि रस अानंद प्रताप व्यंकटेश के तें , लेस पूरे पुन्यन को उदै ततकाल होहु । जगमग माल होहु विक्रम विसाल होहु , मित्र पुशहाल होहु बैरी पाइमाल होहु ॥ ७. व्रजेंद्र विलास- रचयिता रस अानंद । ग्रंथ की समाप्ति १८९५ ठारै सै पच्च्यानवै, शुक्रवार उनमानि । अक्षय वितिया माधवी, ग्रंथ समाप्ति बखानि ।। यह एक उत्तम ग्रन्थ है और इसमें ३६४ छंद हैं। इस पुस्तक की पत्रसंख्या ११६ है । अंत में एक कवित्त द्वारा प्रार्थना की गई है। दुर्भाग्य से इस हस्तलिखित प्रति की अवस्था कुछ अच्छी नहीं है । वैसे पुस्तक पूरी है। १ रामो दाशरथी रामो भृगुवंशो समुद्भव । (३ राम) २ 'बंकटेश' वाले लक्ष्मणजी राजाओं के इष्टदेव थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org www.jainei
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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