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________________ ८७ मत्स्य प्रदेश को हिन्दी साहित्य को देन सर्वप्रथम कवि ने नंदनन्दन ब्रजचंद की प्रार्थना की है, फिर गणपति की, और इसके पश्चात् बलवन्त सिंहजी के राज्य का वर्णन किया है गुर गणपति गिरिजा सुमिरि, बंदि चरन गिरिराज । श्री व्रजेंद्र बलवंत कौ, बरनो राज समाज ।। राजसमाज का वर्णन देखने योग्य है ।' राजा की कीर्ति, गज, सांडिया, अातंक, सभा, आदि के वर्णनोपरान्त कवि अपने ग्रंथ का प्रथम विलास समाप्त करता है। सबसे पहले पिंगल का प्रकरण लिया है क्योंकि 'छंदसार' के अनुसार इनका भी यही कहना है पिंगल मत समुझे बिना, छंद रचन को ग्यांन । होत न याते प्रथम ही, पिंगल करत वषांन ।। इस पुस्तक में ७ विलास हैं। १. विलास - प्रयोजन २. विलास -- पिंगल कर्मनिरूपण विलास --- मात्रा ४. विलास - वर्णवृत्त छंदनिरूपण ५. विलास - व्यंगि शब्दार्थनिरूपण ६. विलास – काव्यदोषनिरूपण ७. विलास -- काव्य गुण अनुप्रास चित्र ऐसा विदित होता है कि इस पुस्तक में एक विलास और होगा क्योंकि अनुप्रास चित्र यादि के पश्चात् उस समय की पद्धति के अनुसार अलंकार प्रकरण होना स्वाभाविक ही है। यह प्रकरण काफी बड़ा होना चाहिए, किन्तु अपनी चारि ह बरन निजनिज सुधर्म । निरबिघ्न आचरत क्रिया कर्म ।। जहं बह प्रवास सुख के निवास । तिन ऊपर कंचन कलस भास ॥ फहगति धुजा लगि प्रासमान । जनु विजय भुजा नभ भासमान ॥ जह चौक चारु चौरे फराक । तहं कटत नचत हय बर चलाक ॥ २ राजा के लिये लिखा है-चौदह विद्या में निपुन, चौंसठि कला प्रवीन । पेनिस द्यौस रहै सदा, कविता के रस लीन । : दूसरे और तीसरे विलास के २५ से ३२ तक के पत्र पुस्तक में नहीं हैं, इनके स्थान पर सादे कागज लगा दिये गए हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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