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________________ मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन सबसे पहले केशों का निरूपण है "जलद जाल अलिमाल मणि, मरकत औ तम तार । नील चमर मषतूल सम, विथुरे सुथरे बार ।। कवित्त छबि की मसाल पे छुट्यो है तम जाल कंधों, सोम की छटा पै घन घटा तोमसाजही । कैधौं रस पानदसरूप के अनूप तंत , कंधौं बिज चमर बिलौके सौति लाजही ।। सौधे सने चिलकै चुनै वा सटकारे कारे, मित्त चित्त चिकनावै हित के समाज ही। अटल अली के फंद बंधन को जी के जैसे , चम्पा वरनी के नीके चिकुर विराजही ।। दोहा बारन-गवनी रावरे, बारन ठई अनित्त । छुट छुटावें साहसहि, बांधे बांधे चित्त ॥" काव्य की दृष्टि से भी भाषा की स्वच्छता, कल्पना की उड़ान, वर्णन को स्निग्धता और स्वाभाविकता तथा छंद को पूर्णता और शब्दचयन की प्रतिभा भावों को अत्यन्त प्रभावोत्पादक रूप में स्पष्ट कर रहे हैं।' इस पुस्तक में निम्नांकित प्रकरण हैं ___ केस, पाटी, बेनी, मांग, भाल, बेंदी, गुलाल की प्राड़, भ्रकुटी, पलक, नैत्र, चितवनि, तारिका, कज्जल, नासिका, नथ, अधर, दंसनन, रसना, बानी, हास, कपोल, कपोल की गाड़, कपोल को तिल, श्रवन, ठोडी, चिबुकचिन्ह, मुख, सर्वमुख, ग्रीवा, भुज, कर, कुच, कंचुकी, उदर रोमराजि सहित, त्रवली, नाभि, कटि, नितंब, जंघा, चरन, जावकएडी, अंगुरी नषत, नूपुर, पाइल, गति, भूषन, गुराई, जरकसी सारी और दामन । १ सिखनख का वर्णन बड़ा विस्तृत है और अंग प्रति अंग को लेकर सुंदर छंदों की रचना की गई है। कवि का निरीक्षण बहुत ही सूक्ष्म और सरस है । शरीर के किसी भी आकर्षक अंग को कवि भूला नहीं है। २ इस कवि के अन्य ग्रंथों का विवरण, जो यथास्थान मिलेगा, इस बात को प्रमाणित करने में सहायक होगा कि इस एक ही कवि में कवि और प्राचार्य संबंधी अनेक बातें पूर्णता के साथ विद्यमान हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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