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प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात पंजर' सावल पहर कहर केई ध्रवै कटारां । लेता छक छक लहर'... 'जियारां। फरहरै पार फूट अंणी', धार रुहिर रत धरहरै । कर कर उछाह गह धर घुमर, बीर अछर सम बड़बई ॥१ बजै झाट बीजलां, काटि पड़ कंध विछूट । तड़िछ उठ घट तरी, जोम धक हूता जूटै । अमो समा श्राछटै, छोह उपटै छछोहां । मिटै घटै नह मरट, लहै चहै गल लोहा । अवनाड़ बीर साहस अधिक, दुहू तरफा छक दापवै । धड़ भिड़े देष पड़ियां धरा, वाह वाह सिर प्रापवै ॥ बूठ' लोह विकराल, तूट अंग धरा तड़फै। फूट कलिंज फिफराड़, झूल पलचरां' झड़फै । बीर थट'° बड़बड़े, चंड पत्र भरे चठठे। रंभ रू'ड बड़बड़े, मुड माला हर गंठे। उफणै छकै किलकै अतर, मेलै सिर झर ओझड़ा। अस हथां थाट ठेले अउर, रावत षेले रूकड़ा1 ॥३
१. पंजर - शरीर। २. अंणी - शस्त्रोंकी नोक । ३. झाट - प्रहार। ४. जोम - वीरता, गवं। ५. अमो समा - प्रामने-सामने । ६. प्राषवै – कहता है। ७. बूठ - बरसता है। ८. तूट - टूट कर। ६. पलचरां- मांस-भक्षी, पक्षी। १०. थट - समूह । ११. पत्र - पात्र । १२. मुड'गंठ – महादेव मुंडमाला पिरोते हैं। १३. रूकड़ां-शस्त्रोंसे।
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