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प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात उलझ आषड़, रुंड रड़ बड़। पंप झड़ पड़, बीर बड़ बड़। अछर अड़ वड़, धरा धड़हड़। इसो मचि आरांण ॥ ३ . दईवाण पत्रवट राषतो, अंणगंज* म्होकम आषतौ । समराथि निज हलकार, साथी उरडियो अणभंग । अवगाढ पोरस उफणे', बहो रीझ करतो जुध वणें । अति रोस उपट, रूकरौं झट । थोग सह थट, रूयण द्रहबट। कमल केई कट, समल सट षट । फबि झपट सिर रंगट मट फट । वर्णं रिणवट", घाट अवघट । लड़े लटचट, कुलट नटवट । पलट उलट, पड़त चटपट । पहै पग फट, बिरद अति षट। जीतबा कजि जंग ।।४
कवित्त बिहद मचे घम गजर, किरमर अरि सिर गोड़1 । केई केई कर किलक, धजर अरि उवर घमोड़ें। १. अछर - प्रकाश । २. पारांण-युद्ध । ३. दईवाण - दीवान, प्रतापसिंह । ४. अंगगंज -अजेय। ५. आषतौ- कहता। ६. समराथि - सामर्थ्यवान । ७. पोरस उफणें - वीरता उफनती (प्रकट होती) है। ८. रूक - शस्त्रका। ६. कमल - मस्तक । १०. रिणवट - युद्ध। ११. किरमर - तलवारोंके । १२. सिर गोड़े-सर काटते हैं। १३. उवर - उर, छाती।
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