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६२ ] प्रतापसिंध म्होकमसिंघरी वात
पड़े झड़े पैमार', अड़े सरदार अमांमा । केई छक चढिया कड़े, सूर मलफै त्यां सांमा । केहकां सिर कट, राम मुख उभा रटै । धरै धार धड़ लड़, प्रगट किरमाल पछटे । केई कथा पत्र धरियां करग', एकण हत्था आछटै । कर वोह सोह चाडै कलां, लोह छाक धरती लुटै ॥ ४ कईक जुट्टै कवर, अउर अणियाचा' भमर । अंग ज वाहर अतर, रंग केसर रच डंबर । चोंप चाव चित चाउ, गुमर धारै गद बहता । अछर झाला दिये , लड़ परला लेवंता । किरवार धार जद्वार कटि, उड अकास पाछो पड़े।
आरती जाण न्हा अछर, बरवाकजि° रथ अड़बड़े ॥ ५ केई पड़तो झल कमल'', आंण चाडै11 सिव आगें । झड़े कटारा कंमध, लटां चहुवा गल लागे । कटिया पग भड़ कि येक, टेक असमर उछटै । लत्थ बत्थ होय लुटै, जांण मतवाला झूट । केई कोट भार धरियां कमल, गल कूची माला ग्रहे । कुंचियां सहत अंग पल कट, अॅड अछर भौका कहै ।। ६ १. पैमार - परमार क्षत्रिय अथवा "झड़पे मार" के अनुसार गिरे हुए पर प्रहार । २. अमामा - वीर । ३. मलफै - उछलते हैं। ४. धरियां करग - हाथमें धारण किये हुए । ५. एकण हत्था आछटै - एक हाथसे ही प्रहार करते हैं । ६. जुट्ट - एकत्रित होकर । ७. परिणयाचा - सेनाके । ८. अछर झाला दिये-अप्सरा संकेत करती है। ६. बरबा कजि - वरण हेतु । १०. कमल - मस्तक। ११. आण चाढे - लाकर चढ़ाते हैं । १२. गळ ग्रहे - गलेमें दुर्गरक्षक चाबियोंकी माला धारण कर। १३. पळ - मांस।
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