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प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात
गीत त्रिकुत[८]बंध' अणभंग बिहु थटपैं जुटे, अंग जोस धर कर उपटै । सज सको आवध अमो समुहां, बकारै बर बीर । इण भांत धक चंड बोपिया', लहरीक किरह हलोलिया । कर साह किरमर सर सम हर। अडर अरि हर पछंट' सिर पर । कससि कैमर फूट बड़ फर । पार कर बर गजर धर हर । सीस हथ धर सोपि जटधर । दीध तिह बर1 चंड पत्र पर गूद पल वर धपाड़े14 रिण धीर ।। १ नव नूर' चढियो भड़ निलां, गढ लाज बांधी जिण गलां"। हद बिहद कर हथहू बिया, नृभै" नर नषतैत । पंजर' रुधारी परलकै, रुधराल पाल' सुपरलकै । १. प्राढ़ा किसनाजी कृत रघुवरजसप्रकास, सम्पादक श्रीसीताराम लाळस, प्रकाशक
राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुरके अनुसार राजस्थानी भाषामें ६२ प्रकारके गीत नामक छंद प्रचलित हैं (पृष्ठ १८६-१८७) जिनमें 'त्रिकुटबंध' गीत भी है। २. अरणभंग - अभंग, अजेय । ३. बिहं- दोनों। ४. प्रावध - प्रायुध, शस्त्र । ५. अमो समुहां - आमने-सामने । ६. बकार - ललकारते। ७. वोपिया - सुशोभित हुए। ८. लहरीक हलोलिया - मानो समुद्रकी लहरोंकी तरह हिलोर लेने लगे। ६. पछंट -प्रहार करने वाला। १०. जटधर-जटाधारी, शिव । ११. तिह बर - उस समय । १२. पत्र -पात्र, बर्तन । १३. पल-मांस । १४. धपाई- तप्त करते । १५. नव नूर - नया तेज । १६. गलां-बातें, गल्ल, गर्दन । १७. नभ-निर्भय । १८. नषतत - अच्छे नक्षत्रों में उत्पन्न । १६. पजर-पिञ्जर, शरीर। २०. षाल - खाळ, परनाला, चमड़ी ।
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