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प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात . [ ५५ ईष कमौं' अहसत्यां धूज अंग उवर धड़के । बोरझाल बिकराल किनां अरण काल कड़के । मूक सिंधु मरजाद उलट प्रायो अंगपारा । किनां गजब कोई कहर पड़े सिर परम पहारां । हलहले थाट हैकंप हुवो झाट अथगां कर झिले । कोटरै सीस घमचाल कज प्रल काल में ही पड़े ।।२ झलके मंगल झाल ईला फिर गई उथले । पड़ि गोलो अज गैब काल टोलो कर चले ।। धाड़ जम धड़हड़ मेर षड़भड़े अचुके। बीरभद्र बड़बड़े हरणं हड़हड़े हसके ॥ बूठो क असरण रूठो संकर सीह बिछटो हक समो। फूटो क सिंधु तूटो गयण" कोट कूद जूटो कमो ॥ ३
बात अटै सफीलां13 उपरा निपट अमामी तरवारियांरी भड़ाझड़ बागी। तिण भांत होळीरा षेल माहे डडेहड़ारी कड़ाकड़री घाई लागै तिण भांत लागी। घणी अमांमी गजर पड़े छै । जिण भांत
१. ईष कमौ - महोकसिंहको देख कर । २. अहसत्यां - कायर । ३. धूज''धड़के - अङ्ग कांपते हैं और हृदय धड़कते हैं। ४. मूक''अंणपारां- समुद्र मर्यादा छोड़ कर अपार रूपमें उलट पाया। ५. झाट अथगां कर झिलै - अपार प्रहार सहन करते हैं । ६. घमचाळ कज - प्रहारके लिये। ७. ईळा "उश्रले - पथ्वी चलायमान हुई। ८. पड़ि'चले - तोपसे आश्चर्यजनक गोला गिरता है जिससे काल भी बच कर चलता है। ६. धाड़ 'धड़हड़े - प्रातकसे यमराज भी कांपता है । १०. बूठो क असरण - जैसे वज्रपात हुमा हो । सं. अशनि । ११. तूटो गयण - प्रासमान टूटा । सं. गगन । १२. कोट'"कमो - महोकसिंह गढ़में कैद कर युद्ध करने लगा। १३. सफीलां - दीवारों। ९४. अमामी - तेज, धनी, बहुत । १५. डडेहड़ारी - डांडियोंकी । १६. गजर - चोट।
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