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प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात
ठाकुरे घणी हुई। मो उभा' ईतरी बार लागी पर गढ़ तूटयौ । इतरी कही र दोड़ियो ।
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सो रंजकरी रपट | बाजरी झपट । लायरी लपट । चीतारी दपट । बज्र कर संकर किना बिह्मनो चक्र छूटो । कैतो ईतरी बात कही र कै दोड़तो चढतो नजर ही न आयो । कोटा मांहि तरवार हीज ही । प्रो मोरचांरा घणां षाढा लागा छा तिकां माथा धूण कियो । ठाकुरे वो म्होकमसिंघ कोटमैं उड पड़चौ । तरवारियांरी कड़ा कड़ सुण्यां । ईण भांत तो बारलां कही ।
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अर मांहिला तो चक्रत चित रह गया । जाण्यो क प्रळेकाळरी बीज' पड़ी । किनां परमेसर पीजियो सो आकाससूं तरवार बही ।
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कवित - मक्र' सीस मेटबा चक्र हो कौप चलावै 1
कनां सक्र कर क्रोध बज्र पहाड़ां पठावे ॥
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धरे रोस धज धमल° श्रांचकां करण प्रछटे " 1
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अंग दहरणं 2 अभंग असुर सिर जांरंग उपटे | कर हाक रीठ देतो कहर, वीर डाक बग्गं समौ
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रण संक 14 जोम षड़ियो अनड़" कूद बीच पड़ियो कमौ ॥ १
१. मो उभां - मेरे खड़े रहते ।
२. ईतरी बार लागी इतनी देर लगी ।
३. रंजकरी - बारूदकी ।
४. लायरी लपट - श्रागकी लपट ।
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५. बाता - तेज ।
६. उड पड़यों - उड़ पड़ा ।
७. प्रळ काळरी बीज - प्रलयकालकी बिजली ।
८. पीजियो- क्रोधित हुना ।
६. मक्र - मकर, गर्व
१०. धज धमळ - अग्रणी योद्धा ।
११. प्रांचकांकरण छटे - हाथसे तीर चलाते हैं . ।
१२. दहणू - जलाने वाला ।
१३. वीर डाक बग्गं समो वीर-गर्जना करनेके समान । वीर ५२ कहे जाते हैं ।
१४. रण संक - निशङ्क ।
१५. षड़ियो - चला ।
१६. अनड़- अन, नहीं झुकने वाला ।
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