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________________ ५४ ] प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात ठाकुरे घणी हुई। मो उभा' ईतरी बार लागी पर गढ़ तूटयौ । इतरी कही र दोड़ियो । 3 1 सो रंजकरी रपट | बाजरी झपट । लायरी लपट । चीतारी दपट । बज्र कर संकर किना बिह्मनो चक्र छूटो । कैतो ईतरी बात कही र कै दोड़तो चढतो नजर ही न आयो । कोटा मांहि तरवार हीज ही । प्रो मोरचांरा घणां षाढा लागा छा तिकां माथा धूण कियो । ठाकुरे वो म्होकमसिंघ कोटमैं उड पड़चौ । तरवारियांरी कड़ा कड़ सुण्यां । ईण भांत तो बारलां कही । 5 अर मांहिला तो चक्रत चित रह गया । जाण्यो क प्रळेकाळरी बीज' पड़ी । किनां परमेसर पीजियो सो आकाससूं तरवार बही । 9 कवित - मक्र' सीस मेटबा चक्र हो कौप चलावै 1 कनां सक्र कर क्रोध बज्र पहाड़ां पठावे ॥ 10 धरे रोस धज धमल° श्रांचकां करण प्रछटे " 1 12 अंग दहरणं 2 अभंग असुर सिर जांरंग उपटे | कर हाक रीठ देतो कहर, वीर डाक बग्गं समौ । 16 रण संक 14 जोम षड़ियो अनड़" कूद बीच पड़ियो कमौ ॥ १ १. मो उभां - मेरे खड़े रहते । २. ईतरी बार लागी इतनी देर लगी । ३. रंजकरी - बारूदकी । ४. लायरी लपट - श्रागकी लपट । 5 ५. बाता - तेज । ६. उड पड़यों - उड़ पड़ा । ७. प्रळ काळरी बीज - प्रलयकालकी बिजली । ८. पीजियो- क्रोधित हुना । ६. मक्र - मकर, गर्व १०. धज धमळ - अग्रणी योद्धा । ११. प्रांचकांकरण छटे - हाथसे तीर चलाते हैं . । १२. दहणू - जलाने वाला । १३. वीर डाक बग्गं समो वीर-गर्जना करनेके समान । वीर ५२ कहे जाते हैं । १४. रण संक - निशङ्क । १५. षड़ियो - चला । १६. अनड़- अन, नहीं झुकने वाला । Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003391
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottamlal Menariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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