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प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात [ ५३ नहीं पण मूछां हाथ फेर फेर साथियांन कोटमैं पड़णरी सैन' करै छै । पिंड तो थक्यौ पण जीव तो ईणरो भी कोटमैं पड़णरी धक धरै छै । कोई सुमार लागां पड़तो थको तड़छ षावै छै । तिको भी लुळतो थको कोटरी हीज कांनी जावै छै । दोहा-ईल लु?' फिर उलट्ट, घाव न घटै धीर । सिर सट्ट षट्ट सुजस , नह मिट्ट बरबीर ॥ १
बात ईण भांत कतराहेक नीसरणिया चढे छ। तिकांनूं मांहिला भालांसू साझै छै । जिके दोय दोय तीन तीन आदमी भाला पहर साजणवाळानुं जाय जाय बावै छै । उणां मांहिलाकी गिरवांन' पकड़ पकड़ ल्यावै छै । तिको कुही कुळंगरी सी चोट दिषावै छै । इण भांत कटारियांरी धमरोळ पड़े। लोटपोट हुवा तिको पालात चक्ररी सी लीक बंधी न जाणजे भेळा छै क जुवा जुवा ।।
ईण भांत पाप आपरी रजपूतीरी भांत स कोई14 दिषावै । सो बात कहतां तो बार लागे। पण म्होकमसिंघनें कठे सुहावै । कह्यो
१. सैन - संकेत। २. पिंड - शरीर। ३. धक धरै छ - उत्साह धारण करता है। ४. तडछ पादै छ - तडाछ खाता है, गिरते हुए चक्कर खाता है । ५. लुळतो थको - झुकता हुअा। ६. कांनी - तरफ, ओर। ७. ईल लुटे - धरती पर लेटते हैं । ८. सिर 'सुजस - सिरके बदलेमें सुयश प्राप्त करते हैं। ६. साझे- सम्हालते। . १०. गिरवान – गरेबान, गलेका कपड़ा। ११. धमरोल -मार। १२. पालातचकरी बंधी - अग्निचक्र जैसी लकीर बंध गई। १३. भेळा - शामिल । १४. स कोई - सभी कोई ।
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