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________________ ४६ ] प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात बिमांण ही पाछै रहै छै। अर यांरी कटारियां हंस हालिया पछै कोटनूं जाय जाय बहै छ। तिको अपछरा माळा पकड़ियां चक्रत चित होय रही छै। मन मांहि आधारै छ । म्हे तो ईण- अठै बरियो* पण ईणरी कटारी तो कोटन जाय जाय बहै छै। ईण भांत पड़ता लड़ता लड़षड़ता नीसरणीयां लगायनै चढे छ । कितराहेक पाछै छै तिके आगे होयनै चढ छै । तिके प्रागै चढ्या तिकांरां कांधा पीठ उपरा पग दे दे नै आगार्नु परहरै छ। तठे यारो चाव नै धाव देष जमरांण" पिण डरै छ । मन मांहि यो उसवास' धरै छै । कोटकातूं मलफने मो उपर बाहै पाय । मैं तो आदमी नही कोई महा प्रलयकाळरी लाय" । औ तो ईसड़ा ई बलाय । जिकांसू जम ही टाळी दे जाय। ईण भांत नीसूरणियां चढै छ। अर चढता थकां गोळियां लागै छ सो उलट उलट पड़े छ । दोहा-पिंड गोली लगीया पड़े, भड़ पाछा ऊछाह। जांणक नट उलटिया, पट हुता पछाह" ।। १ १. हंस हालिया पछै - प्राण निकलनेके पश्चात् । हंस प्राणको भी कहा जाता है । २. चक्रत चित - चकित चित्त, भ्रमित चित्त (वीरोंके युद्ध-कौशलसे)। ३. आधार छ - निश्चय करती हैं । धारणा करती हैं। ४. बरियो- वरण किया। ५. परहरै छै - बढ़ते हैं, चलते हैं । ६. जमरांण- यमराज । ७. उसवास - डर, चिन्ता, उच्छ्वास । ८. मलफनै - कूद कर। ६. बाहै - चलावे। १०. लाय - लपट । ११. टाळी दे जाय-बच कर जावे ।' १२. पिंड - शरीर। १३. भड़ आछा अछाह - श्रेष्ठ और उत्साही वीर । १४. जांणक - जानो, मानो। १५. पछाह -पीछे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003391
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottamlal Menariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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