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प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात हर गीतड़ा' गवावणां । दोहा-उतर घोड़ा प्राविया, उछाछलां अरोठ ।
अंगा चाक चहोडिया, धिषती तोड़ा ढीठ ॥१
बात
ईण भांत बात कहतां तो बार लागे। रंजक जागी । कनां तोपषांनारी ईक पलीती दोगी । हर गोळा छूटी। अर औ पण तोपांरा आगोळां । किनां भूषा नाहरांरा सा टोला' । दागिया बांण किनां आकासरा सिचाणरी नांई तूटा । जिण समैं बीरहाक किलकार बागी' अर महा प्रळे काळरी सी घड़ी जागी । जठै मांहिलो बंदूका छूट छ । जको येक येक गोळी दस दस आदम्यांमैं फूटै छै । लोथ पर लोथ पड़े छै । पर मोतियांकी सी माळा झडै छै। जका लोथियारा पगथिया कर कर घणा हेतू भाई भतीजा बाप बेटा उपरां पग धरता अर घणों हरष" करता कोटमैं पड़ण, धावै छै। त्यां उपरा अपछरांरा बिमाण घणां सांघणां अड़बड़ावै छै । यारो छछोहापण इसो सो अपछरारा
१. गीतड़ा - गीत, राजस्थानी भाषामें काव्य सम्बन्धी छन्द विशेष, जिसके कई रूप होते
हैं। कहावत है कि 'नाम गीतडांस होवे ।' २. उछाछलां अरीठ- चञ्चल शूरवीर । ३. अंगा चाक चहोडिया - अंगोंमें वीरता धारण कर। ४. धिषती तोड़ा ढीठ - वीरता और दृढ़ता प्रकट होती थी (?) ५. रंजक जागी - बाती जलाई गई (?) ६. ईक पलीती दागी - एक पलीता दागा गया, पलीता-तोप चलाने के लिये जलाया __ जाने वाला कपड़ेका टुकड़ा। ७. नाहरांरा सा टोला - शेरोंके से झुण्ड । ८. सिचागरी नाई तूटा - बाजकी तरह टूटे। सिचाण शब्द सं. सचानका अपभ्रंश
६. बागी - बजी, हुई। १०. पगथिया - सीढ़ियां, सोपान । ११. घणों हरष - बहुत प्रसन्नता । १२. अपछरांरा बिमारण 'अड़बड़ाव है - अप्सरात्रों के विमान बहुत समीप आवाज करते
हुए उड़ते हैं। १३. छछोहापरण - तेजी।
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