SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात [ २३ बात सो जसकरण बोलियो । दीवाण' ईसड़ी कांई कहो छो। किण ही रजपूतरी परष भी लहो छो। रावत हरीसिंघरा घर मांहे इसड़ो रजपूत नहीं जको उण भीलड़ेनुं मारै । सो दीवाण तो छत्रपती छो । पण हरीसिघरा घर मांहे ओर भी सषरा रजपूत छै जिके उणनुं अकेलो पैठ अंगो अंग मारै । पर बात उबारै । जिणसू दीवाण ईसड़ी किण बाय' कहणी पावै । आ बात सुणी थकी किण- भावै । ईण भीलड़ारो बूतो कासू । सो नजर चढिया अडै म्हांसू। जिण परे आप ईतरी फुरमावो। इण- मारणौं होय तो किण ही एकणनु कहीजे । थे प्रो काम करि आवो। रावला' घर मांहे छै एक एक ईसा रजपूत। जिकौ बांधै दिली नै चीतोड़सू लड़बारो° सूत"। जिणसूं किणहीने फरमाय हाथ देषीजै। के तो मारि आवां के पकड़ लावां तो रजपूत लेषीजै। १. दीवाण - मेघाड़के महाराणाओंकी उपाधि दीवाण' कही जाती है क्योंकि मेवाड़का राज्य एकलिंग महादेवका और महाराणा उनके दीवान माने जाते हैं। देवलियाप्रतापगढ़का राज्यवंश भी मेवाड़के महाराणा मोकलके पुत्र और महाराणा कुंभाके भाई क्षेमकर्ण (अपर नाम, क्षेमसिंह, खेमा या खींवा) से प्रारंभ होता है। इस प्रकार प्रतापसिंहको भी दीवाण कहा गया है । २. परष - परीक्षा। ३. सषरा - श्रेष्ठ । ४. उबार - उद्धार करे, पालन करे । ५. किरण बाय - किस प्रकार । ६. बूतो- प्राधार। ७. कासू - किससे, क्या। ८. एकणनु - एकको। ६. रावला - अापके, सरकारके । १०. लड़बारो - लड़नेका। ११. सूत - सूत बांधनेका यहां तात्पर्य युद्ध करनेके विचार या उपक्रम करनेसे है। १२. फरमाय - फरमा कर, कह कर । १३. देषी- देखिये। १४. लेषीजै-जानिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003391
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottamlal Menariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy