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________________ २२ ] प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात वात ईण भांत घणा ताषड़ा पणांसु' रहै अर टणकापणरी' बातां चोड़ें कहै। ___एक रजपूत रावतजीकी हजूर रहै। जको आदमी तो पाधरो सो । पण मोटियार पगछंटो सो। रावतजी उणन देष पोतारियो । किण वास्तै । ईणनु पोतारतां अोर भी किणी- चोष तीष' लागै तो उण भीलनु अंगो अंग मारै । दूज्यू प्रो मरै नही। अर मारणौं सही। एकण दिन रावतजी दरबार किया बैठा था। तद भीलरी बात चाली। जद उण रजपूत पौतार कहियो । ओर तो कोई दीसै नहीं' जिकौ उण भीलनूं मारै । जे मारै तो अोहीज' रजपूत मारै । जिण बेला सीसौदियौ जसकरण जौगीदासोत' बैठौ थो सौ जसकरण बडो बीराधबीर' । जिसड़ो धीर पंडीर। दोहो-केई बेला4 धसियो, कल रसियो षग रंग । अरिहां' उर बसियो रहै, वो जसियो अरण भंग ।। १. ताषड़ापणांसुं - बल लिये हुए। २. टणकापरणरी - सामर्थ्यपूर्ण । ३. चोड़े - खुलेग्राम, स्पष्ट । ४. पाधरो सो- सीधा-सा, सरल । ५. पोतारियो - बढ़ावा दिया । ६. चोष - श्रेष्ठता, भलाई । ७. तीष - तीक्ष्णता, तेजी। ८. अंगो अंग - द्वन्दमें, स्वयं युद्ध कर । ६. दीस नहीं - दिखाई नहीं देता। १०. ओहीज - यही। ११. जसकरण जौगीदासोत - जोगीदासका पुत्र जसकरण । १२. बीराधबीर - बीराधिवीर, वीरों में भी बीर । १३. धीर पंडीर - शरीरका धीरजवान, धीर पुंडरि नामक सामन्त जैसा । १४. बेला - समय। १५. धसियो - प्रविष्ट हुआ। १६. कल''रंग - असि-चालनमें प्रानन्द प्राप्त करने वाला श्रेष्ठ रसिक। १७. अरिहां - शत्रुओंके। १८. जसियो - यशस्वी, जसकरणसे तात्पर्य है। १६. अण भंग - अभंग, नहीं भग्न होने वाला, वीर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003391
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottamlal Menariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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