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प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात दोहा-सोहां हंदा छावड़ा', धस समुष षग धार । ____बाहै लजरा बिटिया, सोस गयंदां सार ॥
वात
तिण समै भीलांमै एक भील मुदायत । तिको घणांरो आंटायत । सो देवगढरी धरतीरो बिगाड़ करै। तद रावतजी वैनुं मारणरो हुकम कीधौ। सो ो भी एक जायगां न रहै जिण प्रांटै!" न मरै। जे फोजबंधी कर चढे तदि तो ओ भाषारामै11 पैठ । जे दगो बिचारै जदि भो भी सावधान होय बैठे। भील तीस चालीसेकसुं घणी अगम' विषम जायगा रहै। साथरा भील पण बडा आंटा षेटांरा करणहार। निसंक हुवा थका दोड़े अरु मुलकरा धन लहै। दोहा-पग छंटा'" पैरू" निसा, धरियां कर धानख ।
रषवाला मैवासका", येहा भील असंक ॥
१. छावड़ा-पुत्र। २. बाहै - चलाते। ३. लजरा बिटिया-प्रावेष्ठित । ४. गयंदां- हाथियोंके। ५. सार - तलवार ६. तिण सम - उस समय । ७. मुदायत – मुखिया। ८. घणांरो प्रांटायत - बहुतोंको कष्ट देने वाला। ६. वैनुं - उसको। १०. जिण आंटे - जिसके कारण । ११. भाषरामै - पहाड़ोंमें। १२. पैठे - प्रविष्ट हो, चला जावे । १३. अगम - अगम्य, कठिनाईसे पहुँचनेकी । १४. पेटारा - आखेटोंके, प्रहारके। १५. मुलकरा - मुल्कका, देशका । १६. पग छंटा- छंटे हुए पैरोंके, चुने हुए। १७. पैरू - पहरेदार, सावधान रहने वाले। १८. धानंख - धनुष । १६. मैवासका - जंगलके।
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