SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४ ] प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात 2 ईण तर ईणरो रोस देष साचवट पेष' रावतजी बोलिया । ठाकुर थेई सदा छो । हू पातसाह किनां दीवाणसं पेटो धारूं" । ईण भीलर उपरा थांनू कासू पोतारू । हूं तो म्हारै रावत हरीसीघरा घरकी बात कहूं छु । अर ईण भीलरी बात सुण मन मांहि रोस धार रहूं छू । सो हरीसीघरो नांव सुणतां ही भांई म्हौकमसिंघ बैठौ थो सो सो भभकियो । जाणे दारू गंज' मांहे गरी चिणगी' पड़े । किनां बलती' आग मांहै व्रत न्हाषियो झांल आकास जाय ऊड़े । रुकिये हाथीनुं रोस चड़े किनां उकलता' तेल मांहे पांणीरी बूंद पड़े । जिण भांत षिजाये" नागरी" नै दकालियै 12 बाघरी नांई बोलियो | नै मन माहि रोसरो नै जोसरो ताव हूंतो सो चौड़े पोलियो । दोहा - कथ इम सुरण कोपे कमों, अंग अंग प्रगटी आग | बांगी ई बिध बोलियो, जांरण षिजायो नाग ॥ 7 8 3 1 14 बात 6 कहियो दीवाण ईसड़ी" काह" कहो छो । किण ही रजपूतरी १. साचवट पेष - सचाई देख कर । २. पेटो घारू - युद्धका, संघर्षका विचार रखता हूं | ३. पोतारू - बढ़ावा दूं, प्रोत्साहित करूं । ४. ईसो - ऐसा । ५. दारू गंज - मदिरा के संग्रह में । ६. चिरणगी - चिनगारी । ७. बलती - प्रज्वलित होती हुई, जलती हुई । ८. रुकिये - बलात रोक रक्खे गये । ६. उकलता - उबलते हुए । १०. षिजाये - चिढ़ाये हुए । ११. नागरी - सांपकी । १२. दकालियै - ललकारे हुए । १३. नांई - तरह । १४ कथ - कथन । १५. कमो - महोकमसिंह | १६. ईसड़ी - ऐसी । १७. काह - क्या । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003391
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottamlal Menariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy