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________________ [ १२ ] मारहटो कहे मैं गंजिया लोक पाजां मांहे, राजा मांहे गंजी रंजियो मारू राव ॥ ३ सतारानाथनूं समाचार लिषे येम सोबो, जदां पाछो कागजांमैं मोकले जबाब । मांनरा पोतरा हूं'त उषेलो मांडजो मती, बीज राई तणा नषँ उरो लीजो बाब ।। ४ उक्त गीत और कवित्तोंसे प्रकट है कि बहादुरसिंह परम वीर नीतिवान, धार्मिक, विद्याव्यसनी, रणकुशल, दानी, न्यायकर्ता, कला-प्रेमी, शुभ चरित्रवान, प्रजापालक, चतुर और योग्य सैनिकों की परीक्षा में कुशल शासक थे । उन्होंने दिल्ली- श्रागरेकी शक्तिको हो पराजित नहीं किया, वरन् मराठा वीरोंनें भी अपनी वीरताकी धाक जमा दी थी। प्रस्तुत वार्ता में उत्तर मुगल काल में प्रचलित युद्ध-प्रणालीका विशेष वर्णन है जिससे बहादुर सिंहकी युद्ध - सम्बन्धी विस्तृत जानकारीका परिचय मिलता है और इस दृष्टिसे वार्ता अधिक महत्त्वपूर्ण है । उक्त कवित्तों और गीतके काव्य-सौष्ठवसे ज्ञात होता है कि तत्कालीन डिंगल और पगल शैलीके परम कुशल कवियोंसे बहादुरसिंहका सम्पर्क रहा था । 'रावत प्रतापसिंघ महोकमसिंघ हरीसिंधोतरी बात' में देवलिया रावत हरीसिंह के पुत्र प्रतापगढ़ के संस्थापक रावत प्रतापसिंह और इनके अनुज महोकमसिंहका वीरतापूर्ण चरित्र वर्णित है । रावत प्रतापसिंह और महोकमसिंह बहादुरसिहते सम्बन्धोंके विषय में इतिहासग्रन्थ मौन हैं। रावत प्रतापसिंह, प्रतापगढ़ का शासन-काल सन् १६७३ ई० से सन् १७०८ ई० का माना जाता है और महाराजा बहादुरसिंह, किशनगढ़ सन् १७४६ ई० से सन् १७८२ ई० तक शासक रहे ।" इसलिए यह तो स्पष्ट है कि बहादुरसिंह रावत प्रतापसिंह और महोक सिंहकी वीरतासे प्रभावित हुए थे । 'रावत प्रतापसिंघ महोकमसिंघ हरीसिंघोतरी बात' प्रतापसिंह और महोक सिंहके वीरतापूर्ण चरित्रों पर प्राधारित एक वर्णनात्मक कथा है । वार्ता में सर्वप्रथम राजस्थानी कथा-परंपरानुसार रावत प्रतापसिंहका श्रेष्ठ क्षत्रिय शासकके रूपमें चित्रण है । तदुपरान्त महोक सके वीर चरित्रका वर्णन हुआ है । फिर एक उपद्रवी भीलके महोकमसिंह द्वारा मारे जाने की घटनाका विस्तृत और अनूठा वर्णन है । इस उदाहरण द्वारा महोक र्मासंहकी वीरता प्रकट की गई है । तदुपरान्त कथाकारने औरङ्गजेबकी शासन-नीतिका वर्णन करते हुए उसके शाहजादे मुज्जमके द्वितीय पुत्र श्रजीमुश्शानकी बंगालकी सुबेदारीका उल्लेख किया है। कथाकारने लिखा है कि औरङ्गजेबने एक खुफिया खबरनवीस श्रजीमुश्शान के लिए नियुक्त किया था जिससे अजीमुश्शानका वैमनस्य था और औरङ्गजेब हर बातमें खबरनवीसका ही पक्ष लेता था । तब अजीमुश्शानने अपने सेवक शेरबुलंदखां द्वारा खबरनवीसको मरवा दिया और रावत १. प्रतापगढ़ राज्यका इतिहास ( स्व० डॉ० गौरीशंकरजी हीराचंदजी श्रोझा ) पृष्ठ १७७, १८८ । २. मारवाड़का इतिहास, भाग २, ( पं० विश्वेश्वरनाथजी रेऊ) पृष्ठ सं० ६८६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003391
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottamlal Menariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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