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________________ क. प्रतिके अन्तमें लिखे गये निम्न कवित्तादिसे भी बहादुरीसहके चरित्रकी अनेक विशेषताएं प्रकट होती हैं कवित्त- दुरजनसौं जीत, असजनसौं नीत, गुरदेवनसौं प्रीत, तोहि सुजस कृपांनी को। धर्मनिको साधक, अधर्मनिको बाधक , सु हरिको अराधिक, पचोध सावधांनीको। संगरको सूर, दारिदकौं दूर, सुभ गुननको पूर, मान मिल अभिमानीको। हंसबंसभूषन, बहादुर नरेस बली, न्याव तेरो असौ ज्यौ नवेरो दूध-पानीको ।। १ मेर मजबूतीहको, रूप रजपुतीहूको, थाइक समुद्र, मन चाहक मुनींनको। दिनको करैया, राग रूपको रिझया, भूप परतिय तजिया, अरु पालक दुननिको। थंभ पातसाहीको, सिपाहीको पिछांनहार, असी गत काहू माझ कानन सुनी न को। हाय अब गुनहूको तूट गौ है देषो तरु, उठ गो बहादुरेस, गाहक गुनींनको ॥ १।२] छल बल जाके आगे, दुर्जनकौं दाब लेह. तेज सम तूल जाको, राजत दिनेसको। पुन्य नीत थाप के, उथाप्यो पाप अवनीको, दुष्टनकौं मार के, उतारयो भार सेसको । भारी राज वारे भूप चाहत है भीर जाह. प्रजनको पालक, अरु नासक कलेसको। काज सिद्ध मांहि जैसे, लीजिये गनेस नाम, जुद्ध काज नाम त्यौ, बहादुर नरेसको। १[३] गीत- डंडे षांनरो मेवास, दिली आगरो स्याहरो डंडे, प्रान रोकी गिणां बिहु राहरो अनेक । प्रांटीपणौं सोबादार सतारानाथ आष, हिंदुवामैं मांटीपणौं राजांनरो हेक ।। १ छंडे पाव पाछा जंगा पेस दे छूटिया छत्री, आधा पाछा देस नेस लूटिया अनूप । कहै सेनापती मैं पहादरेस कीधा केई, भू लोक अनमी ओ बहादुरेस भूप ॥ २ तोपांरा अग्राजा मांहे संजियो न कोट कितां, महाबीर साजां मांहे भंजीया अमाव । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003391
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottamlal Menariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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