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________________ [ ७] अन्तर्गत १०वें ग्रन्थ "फुटकर वाता" में ७३वीं रचनाके रूपमें अङ्कित हुई है। इस ग्रन्थमें वार्तामोंकी पूर्ण संख्या १४० है । अब तक ज्ञात हुई यह एकमात्र कृति है इसलिये विशेष महत्त्वपूर्ण है। ___बगड़ावतमें महाभारत काव्यको भौति अनेकों उपकथाओं और घटनाओंका काव्यात्मक अङ्कन है । बगड़ावतको सुविस्तृत कथावस्तुको देखते हुए प्रस्तुत वार्ता अत्यन्त संक्षिप्त है और “गागरमें सागर" भरनेका प्रयत्न लक्षित होता है। संभवतः विभिन्न विषयक १४० वार्ताओंका लेखन-कार्य करनेमें लेखकको विस्तार में जानेका अवकाश नहीं प्राप्त हुआ है । वार्ताके प्रारंभमें "राजा बोसळदे चहवांण राज्य करें" का उल्लेख है। अजमेरका वीसलदे चौहान प्रसिद्ध "वीसलदे रास" नामक प्रेमाख्यानका नायक भी है। अजमेरके चौहान शासकोंमें वि० सं० १२२१ तक चार वीसलदे हुए हैं । इसलिये निश्चित रूपसे नहीं कहा जा सकता कि कथामें लिखित बगड़ावतोंका मूल पुरुष "हररांम चहवांण" किस वीसलदेका समकालीन था। संभवतः यह विशेष प्रसिद्ध वीसलदे चतुर्थका समकालीन हो, जिसका शासनकाल सं० १२१० से १२२१ विक्रमी माना गया है । कथाके प्रारंभमें ही अजमेरके कोका साहको बालविधवा पुत्री तपस्विनी लीलाके हरराज चहुवाणसे दृष्टि-सम्पर्क द्वारा ही गर्भको घटनासे पाटकोंका कथाके प्रति श्रौत्सुक्य जागृत हो जाता है । प्रागे लीलाके नृसिंहरूपमय बाघाजी नामक पुत्र उत्पन्न होता है और फिर तीजके त्यौहार पर वाटिकामें भूलनेके लिये आगत १२ विभिन्न जातीय कन्याओंसे बाघाजीका विवाह नाटकीय रूपमें होता है तो पाठकोंमें कथाके प्रति विशेष आकर्षण उत्पन्न हो जाता है। बाघाजीके २४ पुत्र हुए जो 'बगड़ावत' नामसे प्रसिद्ध हुए। इन २४ पुत्रोंके विवाह गुर्जर कन्याओंसे हुए। इस प्रकार बगड़ावतोंकी वृद्धि हुई। बाघापुत्रसे बाघापुत्त>बाघाउत और बघावतके स्थान पर 'बगड़ावत' शब्दमें 'डा' ध्वनिका आगम संभवतः एक ही परिवार में विभिन्न जातियोंका मेल होनेसे उपेक्षावृत्तिका सूचक है। राजस्थानके डूंगरपुर-बांसवाड़ा क्षेत्रका 'वागड़' नामकरण भी 'बगड़ावतों से सम्बद्ध हो सकता है। यह भी संभव है कि बगड़ावतोंके मूल पुरुष हरराजके शिकारी एवं व्याघ्र-अरि होनेसे इस क्षेत्रका नाम बाधारि> वागड़ हुआ हो अथवा वागड़ क्षेत्रमें बाधा-अरि अर्थात् बगडावतोंका कोई शत्रु रहता हो। बहुत संभव है बाघको रावत उपाधि हो जिससे वह बाघ रावतके नामसे प्रसिद्ध हो गया हो और 'बाघ रावत' से 'बगड़ावत' शब्द प्रचलित हुआ। ___कथामें अतीत (सन्त) और भोजाके वार्तालापमें उर्दू का प्रभाव प्रकट किया गया है। जैसे 'मैं चलूगा', 'मैं माया', 'तुझकु' प्रादि । प्रस्तुत कथाकी भाँति अन्य कई राजस्थानी कथाओंमें मुस्लिम प्रभाव बतानेके लिये उर्दू प्रयोगोंकी विशेष प्रवृत्ति दिखाई देती है। यह प्रवृत्ति मुसलमानी शासनके कारण 'उर्दू' के विशेष प्रचारको द्योतक है।। प्रागे अतीतके पारसरूप होने, बगड़ावतोंकी ऐश्वयं-वृद्धि, जेलूके रूपमें देवीका अवतार ग्रहण करने, उदयरावके जन्म, भिनाय राणाको पराजय और देवनारायणके लुप्त होने आदिको अलौकिक और पाश्चर्यमयी घटनाओं के साथ कथा पूर्ण होती है । ऐतिहासिक तथ्योंके साथ अलौकिक घटनाएं प्रस्तुत करनेकी प्रवृत्ति सामान्यतः अनेक कथाओंमें लक्षित होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003391
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottamlal Menariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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