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________________ [ ] संग्रह-ग्रन्थमें अधिकाधिक वार्तामोंको लिखनेके मोहसे प्रस्तुत वार्तामें चरित्र-चित्रण, घटना-विवरण और पृष्ठ-भूमि-अङ्कनका विस्तार नहीं दिया गया है। संभवतः लेखकने इनकी आवश्यकता बगड़ावतोंके व्यापक प्रभाव के कारण भी नहीं समझी है। प्रस्तुत वार्ता कई भारतीय कथानक रूढ़ियों और अभिप्रायों (Motieves) का समावेश भी कलात्मक रूपमें हुप्रा है। जैसे दृष्टि-सम्पर्कसे गर्भधारण, नृसिंहरूपी बालकका जन्म, बालक-बालिकाओं द्वारा खेल हीमें विवाह कर लेना, उबलते हुए तेल में गिरना और पारस होना, अन्यायकी प्रांच शेष नागके लगना, देवीका अवतार ग्रहण करना, कमलसे बालकका उत्पन्न होना, होनहार व्यक्ति पर सर्प द्वारा छाया करना, बालकको सिंहनी द्वारा दूध पिलाना, गायोंकी रक्षाके लिये युद्ध करना, आदि । उक्त प्रसङ्ग अनेक भारतीय कथाओंमें मिल जाते हैं। प्रस्तुत वार्तामें भी इन चमत्कारिक घटनाओंका कलात्मक रूपमें समावेश हुआ है। . प्रतापसिंघ म्होकमसिंघ हरीसिंघोतरी वात पुस्तकमें ग्रहीत दूसरी कथा 'प्रतापसिंघ म्होकसिंघ हरीसिंधोतरी वात' एक ऐतिहासिक वार्ता है, जिसका उपयोग स्व डॉ. गौरीशङ्कर हीराचन्द प्रोझाने भी राजपूतानाका इतिहास लिखने में किया है । प्रस्तुत वार्ताको हमें पांच प्रतियां उपलब्ध हुई हैं, जिनमें से दो प्रतियां (क. और ख.) राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर के संग्रहालयसे, एक (ग. प्रति) महाराजकुमार डॉ रघुबीर सिंहजी एम ए, डी लिट् एम. पी. के सौज्यन्यसे, श्री रघुबीर लायब्ररी सीतामऊ द्वारा, एक (घ. प्रति) श्रीयुत नारायणसिंहजी भाटी द्वारा राजस्थानी शोध-संस्थान, चोपासनीसे और एक प्रति (ङ) श्रीयुत गोपालनारायणजी बहुरा एम. ए. उपसञ्चालक रा. प्रा. वि. प्र. के सौजन्यसे श्री लाधूरामजी दूधोडिया द्वारा प्राप्त हुई है। प्रतियोंका परिचय प्रति-क. राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुरकी प्रति, प्रन्थ संख्या ७८७४ । प्राकार ८.६x६ इञ्च । गुटका, पत्र संख्या ३० । प्रति पत्रमें पंक्ति संख्या १६, १७ और प्रत्येक पंक्तिमें अक्षर संख्या १४ से १७ । लिपिकाल संवत् १८६५ चैत्र विद १३ । लिपिस्थानजयपुर । वात के अन्तमें कर्ताका नाम इस प्रकार लिखित है-- "ईती श्रीरावत म्होकमसींघ हरीसींघोतरी बात म्हाराजधिराज म्हाराज श्री बहादुरसीघजी क्रत संपूर्ण किसनगढ राजस्थान ।" प्रतिके अन्तमें बहादुरसिंहजीके विषयमें तीन कवित्त, एक गीत और मुंहणोत शिवदास कृत "सूर-सती-संवाद" एवं महाराज नागरीदास कृत चोसर दोहा हैं । तीनों कवित्तों और गीतोंसे बहादुरसिंहजीके विषयमें महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। प्राप्त प्रतियोंमें यह विशेष विश्वसनीय है इसलिये मुख्य पाठ इसी प्रतिका ग्रहण किया गया है। प्रति-ख. राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुरको प्रति, ग्रन्थ संख्या ६७१६ । प्राकार ४.५४२६ इञ्च । गुटका पत्र संख्या ७० । प्रति पत्रमें पंक्ति संख्या ७ और प्रत्येक पंक्तिमें १. प्रतापगढ़ राज्यका इतिहास, वैदिक यन्त्रालय, अजमेर, पृष्ठ १८५। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003391
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottamlal Menariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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