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रायण' सम्बन्धी लोक-नाटकोंका अभिनय होता रहा है, जिनका प्रकाशन भी हो चुका है। देवजी बगड़ावतकी पूजा राजस्थान में कई स्थानों पर होती है किन्तु इनकी पूजाका मुख्य केन्द्र आसीन्द मेवाड़ में है। बगड़ावतों द्वारा निर्मित एक सरोवर फतहनगर (उदयपुर) के समीप गांव गवारड़ीमें है और एक बावड़ी बीलाड़ाके समीप है।
पाबूजीरा पवाड़ा, निहालदे सुल्तान आदि राजस्थानी लोक काव्योंकी भाँति 'बगड़ावत' का पूर्ण सङ्कलन, सम्पादन और प्रकाशन भी अब तक संभव नहीं हो सका है। वास्तव में इन काव्योंका सौष्टव और ऐतिहासिक महत्त्व प्रसिद्ध 'पृथ्वीराज रासो' से न्यून नहीं है। यह कवि चन्द रचित 'रासो' भी 'बगडावत' प्रादि राजस्थानी काव्योंकी भांति प्रारंभमें मौखिक ही प्रचलित रहा और इस तथ्यकी अोर ध्यान नहीं जानेसे विद्वानोंने पृथ्वीराज रासोका निर्माण-काल १८ में शताब्दि तक निश्चित करनेका प्रयत्न किया है। पृथ्वीराज रासोका निर्माण कवि चन्दने पृथ्वीराज चौहानकी वीरतासे प्रभावित होकर पृथ्वीराजके मृत्युकाल सं. १२४६ विक्रमीके लगभग ही किया होगा। कई वर्ष मौखिक रहनेसे ही पृथ्वीराज रासोमें परिवर्तन और परिवर्द्धन हो गये जिससे उस पर अप्रामाणिकताके आक्षेप किये गये। इस कथनके प्रमाणमें निम्नलिहित तथ्य संक्षेपमें विद्वानोंके विचारार्थ प्रस्तुत किये जाते हैं१ पृथ्वीराज रासोको धारणोजमें लिखित प्रति संवत् १६६४ वि० को उपलब्ध हो चुकी है जिससे इस कालसे पूर्व पृथ्वीराज रासोका निर्माण सर्वथा सिद्ध है। यह प्रति
राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुरमें सुरक्षित है। २ रासो अथवा "रास" शब्द ही मूलतः गेय काव्यका प्रतिबोधक है। राजस्थान मध्यभारत और गुजरातमें "रास" शैलीमें गेय काव्य लिखनेकी प्राचीन परंपरा है जिसके अन्तर्गत सैकड़ों ही "रास" कृतियां उपलब्ध होती है। ३ पृथ्वीराज रासोके मौखिक रहनेसे ही इसके लघुत्तम, लघु, बृहत् और बृहत्तर रूप
प्रचलित हो गये। ४ भारतीय ही नहीं कई विदेशी भाषाओं में भी प्राचीन प्रारंभिक साहित्य मुख्यतः
मौखिक वीर काव्यों (Ballads) के रूपमें प्रचलित रहा है। ५ मुनि श्री जिनविजयजी, पुरातत्त्वाचार्यको "पुरातन प्रबन्ध संग्रह" में प्राप्त हुए पृथ्वीराज रासोके छन्दोंसे चन्द कविके प्रस्तुत कान्यकी प्राचीनता और लोकप्रियता सिद्ध होती है।
१ राजस्थानके लोक नाट्य, श्रीयुत् देवीलालजी सामर एम. ए., पृष्ठ ५३, और "राजस्थान के लोक नाटक" श्रीयुत् अगर च-दजी नाहटा, लोक-कला, भारतीय लोक-कला मंडल, उदयपूर भाग १, अङ्क २ । श्री बंशीधर शर्मा, किशनगढ़ने भी उक्त विषयमें दो ख्याल लिख कर प्रकाशित किये हैं। ___ २ श्रीयुत् डॉ. मोतीलालजी मेनारिया, राजस्थानी भाषा और साहित्य पृष्ठ ६३ ।
३ श्रीयुत् डॉ० गौरीशङ्क-जी हीराचन्दजी ओझा-पृथ्वीराज रासोका निर्माणकाल (कोशोत्सव स्मारक ग्रन्थ, काशी नागरी प्रचारिणी सभा, काशी)।
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