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________________ जिसने सर्वप्रथम वीर बगड़ावत बन्धुओंके विषयमें कोति-श्लोक लिखे जिनकी संख्या १५००० पताई जाती है। ___राजस्थानमें लोकमान्यतानुसार 'बगड़ावत' प्रति रात्रि तीन प्रहर गाया जाने पर ६ माहमें पूर्ण होता है। बगड़ावत काव्य वरतुवर्णन, चरित्रचित्रण, इतिहास और काव्यसौष्ठवको दृष्टिसे महत्त्वपूर्ण है किन्तु अब तक इसका संकलन, सम्पादन और प्रकाशन तो क्या किसी भी साहित्यिक-इतिहासमें उल्लेख तक नहीं हुआ है। अब तक पूर्णरूपेण लिपिबद्ध न होनेसे इसमें क्षेपकोंका होना भी स्वाभाविक है। - 'देवजी बगड़ावतारी वात' के प्रारंभमें 'वीसलदे चहुवांण' के राज्य-कालमें बगड़ावतोंके मूल पुरुष "हररांम चहवांण" का उल्लेख है। वीसलदे चौहानको यदि अजमेरका विग्रहराज चतुर्थ मान लिया जावे तो उसका शासन-काल वि. सं. १२१० से वि. सं. १२२१ माना जाता है। तदनुसार बगड़ावतका निर्माणकाल १३ वी सदी विक्रमी ज्ञात होता है। मारवाड़ मर्दुमशुमारी रिपोर्ट सन् १८६१ ई०में भी देवजीका जन्म संवत् १३०० होनका उल्लेख है। देवजीके जन्मसे पूर्व अवश्य ही वगड़ावत बन्धुओंकी वीरता और वैभवका प्रचार हो गया होगा, जिनके विषयमें प्रसिद्ध है - माया मारणी बगड़ावतां, के लाखै फूलाणी। रही सही सो मारण गौ, हर गोविंद नाटाणी ।। अर्थात् माया (धन-ऐश्वर्य) का उपभोग बगड़ावतोंने किया। तदुपरान्त लाखा-फूलाणीने भी प्रानन्दोपभोग किया। तत्पश्चात् जो धन अवशेष रहा उसका आनन्द हरगोविन्द नाटाणीने प्राप्त किया। लाखा फूलाणी कच्छके प्रसिद्ध वीर और ऐश्वर्यशाली व्यक्ति थे । हरगोविन्द नाटाणी जयपुर महाराजा सवाई ईश्वरीसिंहके दीवान थे। उक्त दूहेमें 'कै लाखे फूलाणीके स्थान पर 'जग सारे जाणी' पाठ भी मिलता है। देवजी बगडावतका एक मन्दिर महाराणा सांगाने चित्तोड़में निर्मित करवाया था। कहते हैं कि उक्त महाराणाको देवजीका इष्ट था ।' राजस्थानमें 'वगड़ावत' और 'देवना. i Preliminary Report on the Operation in scarch of Mss. of Bardic Chronic.ils, Asiatic Society, Calcutta, Page 10. २ अजमेर हिस्टोरिकल एण्ड डिस्क्रिप्टिव (हरविलास शारदा) पृष्ठ १४८, १५३-१५४ । ३ मारवाड़ मर्दुमशुमारी रिपोर्ट सन् १८६१ ई., भाग ३, पृष्ठ ४६ । ४ श्रीयुत् पं. गोपालनारायणजी बहुरा, एम. ए. द्वारा सम्पादित और अनुवादित फार्बस कृत रासमाला" भाग प्रथम पूर्वाद्ध पृष्ठ १०२-१०४।। ५ जयपुर राज्यका इतिहास, लेखक पं. हनुमान शर्मा पृष्ठ १८१ । . ६ “राजस्थान के लोक देवता" पं. झाबरमलजी शर्मा, मरुभारती, पिलानी वर्ष ३, मङ्क ३। ७ मारवाड़ मर्दुमशुमारी रिपोर्ट सन् १८६१ ई. भाग ३, पृष्ठ ४६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003391
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottamlal Menariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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