SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कथा-लेखकोंमें बहुज्ञता-प्रदर्शन और सम्बद्ध विषयोंका साङ्गीपाङ्ग वर्णन करनेकी, विशेष प्रवृत्ति रही है, जिसके परिणामस्वरुप विस्तृत वस्तु-वर्णन और नामोंको पूर्णता.. भी कई कथाओंमें प्राप्त होती है। ऐसी रचनात्रोंमें पृथ्वीचन्द्र चरित्र, सभा-शृङ्गार, कुतूहलम्, खींची गंगेव नींबावतरो बेपहरो और राजान राउतरो वातवणाव विशेष महत्त्वपूर्ण हैं। राजस्थानी कथाओंको निम्नलिखित भागोंमें विभक्त किया जा सकता है१ वीरता सम्बन्धी कथाएं। २ प्रेम विषयक कथाएँ। ३ धार्मिक कथाएँ। ४ हास्य कथाएं, और ५ प्रकीर्ण कथाएं, जिनमें अनेक स्फुट विषयोंका समावेश अथवा मिश्रण होता है। जैसे-नीति, पशु-पक्षियों सम्बन्धी और कहावत आदिको कथाए। प्रस्तुत पुस्तक राजस्थानी साहित्य-संग्रह, भाग २के अन्तर्गत तीन महत्त्वपूर्ण कथानोंका समावेश किया गया है जिनमें से 'देवजी बगड़ावतारी वात' का लेखक अज्ञात है और जिसकी एकमात्र प्रति अनूप संस्कृत पुस्तकालय, बीकानेर में प्राप्त हुई है। दूसरी कथा 'रावत प्रतापसिंघ म्होकसिंघ हरीसिंघोतरी वात' बहादुरसिंहजी किशनगढ़ महाराजा द्वारा रचित है, जिसके सम्पादनको प्रेरणा श्रीयुत पं. गोपालनारायणजी बहुरा, एम. ए. उप सञ्चालक राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठानसे प्राप्त हुई है। तीसरी कथा अज्ञात कर्तृक 'वीरमदे सोनोगरारी वात' है। देवजी बगड़ावतारी वात 'देवजी बगड़ावतारी वात' में प्रथम बगड़ावतों और तदुपरान्त देवजीके सम्बन्धमें महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। देवजी और बगड़ावतोंसे सम्बद्ध एक काव्य भी राजस्थानमें मुख्यतः गुर्जरों द्वारा गाया जाता है। इस काव्यके सम्बन्धमें महामहोपाध्याय श्री हरप्रसाद शास्त्रीने लिखा है कि भाट जातिमें सन् १२०० ई.के आसपास छोळू नामक कवि हुआ ___ १ इनमें से अन्तिम दो वार्तामोंका प्रकाशन श्रीयुत् पं. नरोत्तमदासजी स्वामी द्वारा सम्पादित "राजस्थानी साहित्य संग्रह, भाग १" में (राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर) हो चुका है। २ राजस्थानी कथा-साहित्य सम्बन्धी कार्योंके विषय में श्रीयुत् अगरचन्दजी नाहटाका, निबन्ध (वरदा वर्ष २, अङ्क २, विसाऊ, पृष्ठ ६८-१०८) ष्टव्य है। ३ देवजीको पूजा राजस्थानके कई भागोंमें लोक देवताके रूप में होती है। विशेष देखिये श्रीयुत झाबरमलजी शर्माका निबन्ध राजस्थान के लोक-देवता 'मरु-भारती, पिलानी,, वर्ष ३, अङ्क ३, पृष्ठ २। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003391
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottamlal Menariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy