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________________ * नगरकोट्ट महातीर्थ । Mereज्ञप्तित्रिवेणि की दो प्रधान व्यक्तियों का-आचार्य वि श्रीजिनभद्र और उपाध्याय श्रीजयसागर का-अ. धिक परिचय दिया जा चुका । अब केवल एक प्रधानस्थान का परिचय बाकी है। वह स्थान " नगरकोट्ट महातीर्थ है, कि प्रधानतः जिस की यात्रा का वर्णन इस प्रबंध में किया गया है। देखें तो अब, यह स्थान कहां पर है और इसे आज कल क्या कहते हैं ? नगरकोट्ट को आज कल काँगडा या कोट काँगडा कहते हैं। इस का आधुनिक हाल बाबू साधुचरणप्रसाद ने अपने " भारतभ्रमण" के द्वितीय-खण्ड (पृ. ४७९.) में, संक्षेप में इस प्रकार लिखा है: " पंजाब के जलंधर-विभाग के काँगडा जिले में (३२ अंश ५ कला १४ विकला उत्तर अक्षांश; ७६ अंश १७ कला४६ विकला) पूर्व देशांतर में काँगडा म्युनिस्पलिटी कसबा है, जिस को पहिले लोग नगरकोट कहते थे। “सन् १८८१ की मनुष्य-गणना के समय काँगडा में ९२८ मकान और ५३८७ मनुष्य थे; अर्थात् ४४५४ हिन्दू, ८७२ मुसलमान,९सिक्ख और ५२ दूसरे। ___ "कसबा एक पहाडी के दोनों ढालू पर बसा है; वहां से बाणगंगा देख पडती है । दक्षिणी ढालू पर कसबे का पुराना भाग; उत्त. रीय ढालू पर भवनकी शहर तली और महामायादेवी का प्रसिद्ध मंदिर और खडे चट्टान के सिर पर किला है; जिस में गोरखा रेजीमेंटका १ भाग रहता है। कॉगड़े में तहसीली, खेराती अस्पताल, स्कूल और सराय हैं। यह कसबा सुंदर नीला मीनाकारी और गहना बनने के काम के लिये प्रसिद्ध है । काँगड़ा में महामाया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003389
Book TitleVignaptitriveni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1916
Total Pages180
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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