SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीवल्लभोपाध्याय के गुरु ज्ञानविमलजी भी बड़े अच्छे विद्वान् थे । संवत् १६५४ में, बीकानेर ( राजपूताना - मारवाड) में, कि जिस समय वहां पर राजा राजसिंहजी राज्य कर रहे थे, रह कर इन्हों ने महेश्वर कवि के किये हुए " शब्दप्रभेद" कोश ऊपर एक अच्छी विस्तृत टीका लिखी है * । इस के अवलोकन से इन के पाण्डित्य का परिचय मिलता है । इस टीका की प्रशस्ति में अपने विद्वान् शिष्य श्रीवल्लभ का भी उल्लेख किया है और लिखा है कि यह टीका उन्हीं के गाढ साहाय्य से सिद्धि को प्राप्त हुई है । ८२ अस्मदन्तिषदो गाढसाहाय्यात् सिद्धिमागता । विद्वच्छ्रीवल्लभायस्य युक्तायुक्त विवेचिनः ॥ श्रीवल्लभोपाध्याय की कृतियों में से एक कृति बडी ध्यान खींचने लायक है | इस का नाम है विजयदेवमहात्म्य । इस में तपागच्छ के प्रसिद्ध आचार्य श्रीविजयदेवसूरि ( जिनका नाम ऊपर १८ सं० १९४१ वर्षे श्रीपत्तनमहानगरे श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिशिष्य श्रीजय सागरमहोपाध्याय शिष्य शिरोमणिश्रीरत्न चंद्रमहोपाध्याय शिष्य श्रीभक्तिलाभोपाध्याय शिष्यवा० चारित्रसारगणिपठनार्थ लिखितोऽयं शशधरनामा तर्क ग्रंथः ॥ * इस टीका की एक प्रति, जो कि इन्हीं के उपदेश से लिखाई गई है और पाटन के सागरगच्छ के उपाश्रय में अब तक मौजूद है, उस पर इस तरह लिखा हुआ है: ---- सं. १६५७ वर्षे श्रीमद्बृहत्खरतरगच्छे श्रीमेडतानगरे ........ श्रीमज्जिनचंद्रसूरिविजयि राज्ये श्रीजयसागर महोपाध्याय संतानीय श्रीज्ञानविमलोपाध्यायानामुपदेशेन लोढाकुलावतंस संघपति जयवंत भ्रातृ सं० भीम - राजाभिधयोः पुत्ररत्नाभ्यां सं० राजसिंह सं० पुंजराजाह्वयाभ्यां शब्दप्रभेदवृत्तिप्रतिरियं लेखयित्वा विहारिता ........॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003389
Book TitleVignaptitriveni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1916
Total Pages180
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy