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________________ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org जिनभद्रसूरि ( स्व. १५१४ ) ( मूल शाखा. ) जिनचंद्रसूरि ( स्व. १५३०) कमलसंयमोपाध्याय. (१) जिनसमुद्रसूरि ( स्व. १५५५) जिन हंससूरि (स्व. १५७२) जिनमाणिक्यसूरि (स्व. १६१२) जिनचंद्रसूरि (स्व. १६७०) जिनसिंह सूरि ( स्व. १६७४) - जिनराजसूरि (स्व. १६९९) * जिनराजसूरि ( स्वर्ग १४६१ ) | साधुसोम. सिधान्त रुचि महोपाध्याय. जय सागरोपाध्याय. J. 1. रत्नचंद्रोपाध्याय मेघराज सोमकुजर. सत्यरुचि. ( प्रधानशिष्य ) विजयसोम. 1. भक्तिलाभोपाध्याय. 1 चारित्रसारोपाध्याय. भावसागर. सोमचद्र. जीवकलश. कनककलश. ज्ञानविमल. तेजोरंग. श्रीवल्लभ पाठक. I ज्ञानसुंदर. जयवल्लभ. जिनवर्द्धनसूरि. ( पिप्पल खरतर शाखा ) जिनचंद्रसूरि जिनसागरसूरि. T जिनसुंदरसूरि. जिन हर्षसूरि. जिनचंद्रसूरि कमलसंयमो - पाध्याय (२) * इस टेबल में, प्रस्तावना में और भी जिन जिन का उल्लेख हुआ है उन सब के नाम दिये गये हैं । A
SR No.003389
Book TitleVignaptitriveni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1916
Total Pages180
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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