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________________ शिष्यों का नामोल्लेख करते हुए के जयसागरोपाध्याय ने “पं० सिद्धान्तरूचिगणि" के सामान्य विशेषणसे, उल्लिखित किया है। इस विज्ञप्तित्रिवेणि के समय बाद, पीछे से इन्हें महोपाध्याय का पद मिला था। इन्हों ने ग्यासुद्दीन बादशाह की सभा में विपक्षियों के साथ वाद कर विजय प्राप्त किया था। इन के एक शिष्य साधु. सोमणि ने सं १५१९ में, जिनवल्लभसूरिकृत महावीर चरित्रकी टीका बनाई है जिस की प्रशस्ति में यह उल्लेख किया गया है । श्रीखरतरगच्छेशश्रीमज्जिनभद्रसूरिशिष्याणाम् । जीरापल्लीपार्श्वप्रभुलब्धवरप्रसादानाम् ॥ १ ॥ श्रीग्यासदीनसाहेमहासभालब्धवादिविजयानाम् । श्रीसिद्धान्तरुचिमहोपाध्यायानां विनेयेन ॥ २ ॥ साधुसोमगणी शेनाक्लेशनार्थप्रबोधिनी । श्रीवीरचरिते चक्रे वृत्तिश्चित्तप्रमोदिनी ॥ ३ ॥ चार्वी चरित्रपञ्चकवृत्तिर्विहिता नवैकति थिवर्षे हर्षेण महर्षिगणैः प्रवाच्यमाना चिरं जयतु ॥ ५ ॥ सिद्धान्तरुचि महोपाध्याय के एक दूसरे शिष्य विजयसोम थे। इन की सहायता से, मांडवगढ़ के मण्डनसेठने ( ऊपर जिस मंडन कवि का उल्लख हो चुका है वह नहीं। )शास्त्रसंग्रह लिख. वाया था। यह सेठ भी बड़ा धनी और दानी था । इस ने तीर्थ यात्रा, दानाशाला, जिनमंदिर. प्रतिष्ठा और उत्सव आदि कार्यों में बहुत द्रव्य खर्च किया था। इस के लिखवाये हुए ग्रंथों में का एक ग्रंथ, पाटन के सेठ हालाभाई वाले भाण्डार में है जिस पर निम्न लिखित प्रशस्ति लिखी हुई है। १-ग्यासुद्दीन मॉडव-गढ का बादशाह और खिलजी महमुद का बेटा था। यह वाद किनके साथ और किस विषय में हुआ था इस का कुछ पता नहीं लगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003389
Book TitleVignaptitriveni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1916
Total Pages180
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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