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________________ ३-सिद्धान्तरूचि महोपाध्यायः-जिनभद्रसूरि के शिष्यों में ये भी उच्च विद्वान् और प्रतिष्ठावान् थे । ये वे ही सिद्धान्तरुचि है, जिनका नाम विज्ञप्ति त्रिवेणि के १५ वे पृष्ट पर जिनभद्र सरि के इन के हाथ की लिखी हुई एक पुस्तक पाटन के संघ वाले भाण्डार में है जिस पर लिखा है " संवत् १९७३ वर्षे प्रावृषि ऋतौ श्रावणिके मासे कृष्णपक्षे द्वितीयातिथौ सूर्यवासरे प्रातःकाले श्रीचित्रकूटकोट्टोत्तमे श्रीसंग्रामराज्ञो विजयिनि राज्ये श्रीखरतरगच्छस्वच्छे तुच्छेतरे श्रीजिनवर्द्धनसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरयस्तत्पट्टे श्रीजिनसागरसूरयस्तत्पट्टांभोजमार्तण्डाः श्रीजिनसुंदरसूरयस्तत्पोदयाद्रिनिस्तंद्रमित्राः श्रीजिनहर्षसूरयोऽभूवन् । अथ तत्पदृसत्कैरवाकरविकस्वरक्रियोद्यतेषु सांप्रतं श्रीजिनचंद्रसूरिषु निजगणाधीशत्वं कुर्वत्सु तत्सतीर्थंः श्रीकमलसंयमोपाध्यायैः स्वहस्तेनैषा श्रीमहाखंडनटीका विद्यासागरीत्यभिधाना स्वस्यान्यस्य बोधायालेखितराम् । " इन के उपदेश से पाटन की एक श्राविकाने कोटि-उद्यापन किया था और उस के निमित्त कुछ शास्त्र लिखवाये थे । इन शास्त्रों में की एक प्रति पाटन के इसी भाण्डार में है जिस के अंत में इस प्रकार स्मरण-लेख है " सं. १५७० वर्षे वैशाखवदिअमावस्यातिथौ भृगुवासरे अद्येह श्रीअणहिलपुरपत्तने ठाणांगवृत्तिलिखिता । सं० १५७० वर्षे श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिन सागरसूरि पट्टे श्रीजिनसुन्दरसूरिपट्टे श्रीजिनहपपट्टालंकारश्रीजिनचंद्रसूरिविजयराज्ये श्रीकमलसंयमोपाध्यायानामुपदेशेन श्रीओकेशवंशे श्रीसूराणागोत्रे सं० चांपा भार्या सं० चांपलदे पुत्र सं० सहस्समल्ल भार्या सं० भीमी पुत्र सं० विजयसिंह भार्या सं० मटकू पुत्र सं० सोमा इत्यादिपरिवारयुतया भीमीश्राविकया कोट्युद्यापने श्रीठाणांगवृत्तिलेखयां चके । " (बॉम्बे गवर्नमेन्ट की ओर से हेमचंद्राचार्य का जो प्राकृतव्याश्रय छपा है उम्र के अंत में भी इन का उल्लेख है।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003389
Book TitleVignaptitriveni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1916
Total Pages180
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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