SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कथन इसी टीका के प्रशस्ति-पद्यों में लिखा हुआ है । सं. १५११ में, सं० नगराज की पुत्री सोनाई ने, जिनवल्लभसूरि का बनाया हुआ संक्षिप्त वीर-चरित्र, सुनहरी शाही से लिख कर इन्हें समर्पण किया था। इस पर लिखा है " सं. १९११ वर्षे श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिशिष्य वा० श्रीकमलसंयमगणिवाचनाय सा० नगराजपुत्रिकया सोनाई श्राविकया लिखितं ।" संवत् १५२२ का चातुर्मास इन्हों ने यवनपुर (दिल्ही) में किया था। आचार्य जिनचद्रसूरि भी इस साल वहीं पर थे । इन की आज्ञा से, सं० कालिदास की स्त्री सं० हरसिणी ने, उपाध्यायजी को कल्प. सूत्र की एक प्रति भेंट की थी जो बड़े खर्च के साथ तैयार करवाई गई थी। यह पुस्तक सुवर्णाक्षरों से लिखी गई है और प्रत्येक पत्र पर नाना प्रकार के वेल-बूटे और विविध चित्र चित्रित किये गये हैं। यह दर्शनीय पुस्तक यहाँ ( बडौदे ) के “ जैनज्ञानमंदिर" में, शांतमुनिवर श्रीमान् हंसविजयजी महाराज के “शास्त्र-संग्रह " में संरक्षित है। इस के अंत में इस प्रकार उल्लेख है संवत् १९२२ वर्षे भाद्रपदसुदि २ शुक्रे यवनपुरे श्रीहंसेनसाहिराज्ये । श्रीमालज्ञातीय सं० कालिदासभार्यया साधुसहसराजपुत्रिकया सं० हरसिनि श्राविकया पुत्रधर्मदाससहितया कल्पपुस्तकं लिखापितं । विहारितं च श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टालंकारश्रीजिनचंद्रसूरिराजादेशेन श्रीकमलसंजमोपाध्यायानांx ॥ लिखितं च गौडान्वय कायस्थ पं० कर्मसीहात्मजवेणीदासेन ॥ शुभमस्तु । ___ * कर्मस्तविवरण नाम का एक और भी इन का बनाया हुआ ग्रंथ है जो जैसलमेर के भाण्डार में विद्यमान है । यह सं. १५४९ में रचा गया है, ( देखो, जैनग्रंथावली, पृ० ११९ ।) ___- कमलसंयम नाम के एक दूसरे भी उपाध्याय, खरतरगच्छ में, इसी अर्से में हो गये हैं । ये जिनवर्द्धनसूरि की शिष्य-सन्तति में के जिनहर्षसूरि के शिष्य थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003389
Book TitleVignaptitriveni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1916
Total Pages180
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy