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________________ उद्यत्सान्द्रजिनेन्द्रसुन्दरपदद्वन्द्वप्रसादोद्भवद् भूयोऽभीष्टपुमर्थसार्थकजनुः श्रीमालमालामणिः । सोऽयं सोनिगिरान्वयः खरतरः श्रीबाहडस्यात्मजः श्रीसिद्धान्तम लेख यच्च सकलं संघेश्वरो मण्डनः ॥४॥ श्रीमालिज्ञातिमण्डनेन संघेश्वरश्रीमण्डनेन सं० श्रीधनराज सं० खीमराज सं० उदयराज । सं० मंडनपुत्र सं• पूजा सं० जीजा सं० संग्राम सं० श्रीमाल प्रमुखपरिवारपरिवृतेन सकलसिद्धान्तपुस्तकानि लेखयां चक्राणानि ॥ श्रीः॥ -+3 ग्रन्थरचना । जिनभद्रसूरि ने, विद्वत्ता के प्रमाण में ग्रन्थों की रचना की हो एसा प्रतीत नहीं होता । अन्यान्य आचार्यों के जैसे नये नये ग्रंथ तथा पुराणें ग्रंथों पर टीका-टिप्पनादि लिखे हुए मिलते हैं वैसे इन की कोई विशेष कृतियां उपलब्ध नहीं होती। कहीं पर इस विषय का उल्लेख भी नहीं देखा गया। तथापि, सर्वथा अभाव भी नहीं है। इन का बनाया हुआ एक ग्रंथ मेरे दृष्टिगोचर हुआ है । इस का नाम 'जिनसत्तरीप्रकरण' है। यह प्राकृत में, गाथाषन्ध है । इस की कुल गाथाय २२० हैं । इस में २४ तीर्थकरों के पूर्वभवसंख्या, दीप, क्षेत्र, विजय, नगर, नाम और आयु आदि ७० बातों की सूची है इस के अन्त में इन्हों ने अपने गुरुका तथा निज का नामोलेख किया है। " गणहरसुहम्मवंसे कमेण जिणरायसूरिसीसेहिं । पयरणमिणं हियद्रं रहयं जिणभद्दसूरिहिं ॥" संभव है कि और भी कोई छोटा बड़ा ग्रंथ बनाया हो परंतु मेरे देखने-सुनने में नहीं भाया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003389
Book TitleVignaptitriveni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1916
Total Pages180
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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