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क्षित है-भगवतीसूत्र (मूलमात्र) की प्रति है जो मंडन के सिद्धान्त. कोश की है । इस प्रति के अन्त में, मंडन की प्रशस्ति है जिस में लिखा है कि
" संवत् १५०३ वर्षे वैशाखसुदि १ प्रतिपत्तिथी रविदिने अधेह श्रीस्थंमतीर्थे श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरीश्वराणामुपदेशेन श्रीश्रीमालज्ञातीय सं० मांडण सं० धनराज भगवतीसूत्रपुस्तकं निजपुण्यार्थं लिखापितं ।। जयति जगदाधारो देशः स मालवनामको
जयति विजितस्वर्गदुर्गः स यत्र च मण्डपः । जयति विजयी यस्याधीशो महानलमायो
जयति मतिमान् यस्यामात्यः कृती पदमाभिधः ॥ १ ॥ यस्य भ्रातृषु दातृषु प्रशमिषु श्रीमत्सु धीमत्सु च
श्लाध्यः श्लोकतमः समं समभवत् सङ्केश्वरो बाहडः । यस्योदश्चित पूर्वजन्मनि चयैः सत्सञ्चितानां महत्
पुण्यानां फलमेकमेष जयति क्ष्मामण्डनं मण्डनः ॥ २ ॥ यत्कीर्तिव्रततिर्वितत्य गगने दानोदकासेचनात् ___ काष्टानां दशकस्य मण्डपतले सम्मान्ति नैवैकिकाः । सोऽयं सोनिगिरान्वयः खरतरः श्रीबाहडस्यात्मजः
श्रीसिद्धान्तमलेखयद् भगवतीसझं सुधीर्मण्डनः ॥ ३॥* . १ मंडन का वासस्थान मॉडव होने से पुस्तक-भाण्डार भी वहीं स्थापित किया होना चाहिए । इस पुस्तक के खंभायत में लिखे जाने का कारण यह प्रतीत होता है कि पुस्तकें सब जिनभद्रसूरि की देखरेख नीचे लिखी जाती होंगी और इन (सूरि) के, उस समय खंभायत में ठहरने के कारण यह पुस्तक वहां पर लिखी गइ होगी।
* ये ही तीन पद्य (अंतिम पाद को छोड कर ) सारस्वतमंडन की प्रशस्ति में भी हैं। इस से ज्ञात होता है कि ये सब पद्य स्वयं मंडन ही के बनाये हुए हैं।
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