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ड, ३ देहड, ४ पदम, ५ आल्हा और ६ पाहु नाम के छः पुत्र थे। इन में से देहड और पदम तो मांडवगढ़ के तत्कालीन बादशाह आलमशाह के दिवान थे । बाकी के अन्यान्य व्यवसायों में अग्रगण्य थे । इन ६ भाईयों के अनेक पुत्र थे जिन में से ये मंडन और धनदराज विशेष प्रसिद्ध थे। मंडन बाहड का छोटा पुत्र था और धनदराज देहडका एक मात्र लडका था। इन दोनों चचेरे भाईयों पर लक्ष्मीदेवी की जैसी प्रसन्नदृष्टि थी वैसे सरस्वती देवी की भी पूर्ण कृपा थी । अर्थात् ये बड़े भारी श्रीमान् होकर विद्वान् भी वैसे ही उच्च कोटी के थे।
मंडन ने व्याकरण , काव्य, साहित्य, अलंकार और संगीत आदि भिन्न भिन्न विषयों पर, मंडन शब्दांकित अनेक ग्रन्थ लिखे हैं । इन ग्रंथों में से आठ नौ ग्रंथ तो पाटन के ऊपरि-उल्लिखित वाडीपुर-पार्श्वनाथ के भाण्डार में, मंडन ही के (सं० १५०४ में) लिखवाये हुए, विद्यमान हैं । इन के नाम ये हैं-१ काव्यमंडन (कौरव-पाण्डव बिषयक ), २ चंपूमंडन (द्रौपदीविषयक ), ३ कादं. बरी मंडन (कादंबरी का सार), ४ शृंगारमंडन, ५ अलंकार मंडन, ६ संतमंडन, ७ उपसर्ग मंडन, ८ सारस्वत मंडन (सारस्वत व्याकरण ऊपर विस्तृत विवेचन.) और ९ चंद्रविजय प्रबंध । मंडन के जीवन-चरित्र के विषय में, इस के मित्र महेश्वर नाम के कवि ने काव्य-मनोहर नाम का सात सौ वाला एक छोटा सा काव्य लिखा है। इस में मंडन के पूर्वजों का तथा मंडन का संक्षेप में जीवन वृत्तांत उल्लिखित है। यह काव्य मंडन की विद्यमान ता ही में लिखा गया है । इस की भी दो कापी-जो मंडन की लिखवाई हुई और एक ही लेखक की लिखी हुई हैं-उक्त भाण्डार में हैं।
मंडन की तरह धनदराज या धनद भी बड़ा अच्छा विद्वान्
१ यदि बन सका तो ये ग्रंथ इसी ग्रंथमाला में, भविष्य में, प्रकट करने का विचार है।
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