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" संवत् १४९३ वर्षे श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिगुरूणामुपदेशेन श्रीमालवंशे भांडियागोत्रे सा० छाडा भार्या साध्वीनी मेघू तत्पुत्र सा० समदा सा० काला सुश्रावकाभ्यां श्रीसूदा श्रीहेमराज प्रमुखपुत्रपौत्रादिपरिवारकलिताभ्यां श्रीसूर्यप्रज्ञप्तिटीका लेखिता। श्रीआशापल्लयां पातशाह श्रीअहम्मदशाहराज्ये ।"
" सं. १४९४ वर्षे खरतर श्रीजिनभद्रसूरिगुरूणामुपदेशेन आशापल्लीनगरे श्रीमालवंशे भांडियागोत्रे सा० छाडा............श्रीदशवैकालिकचूर्णिलेखिता।"
___ पाटन और आशापल्ली के भाण्डार एक ही श्रावक के लिखाये हुए न ही थे; किन्तु, जुदा जुदा गृहस्थों ने अपनी इच्छानुसार एक, दो; अथवा दश, बीस पुस्तकें लिखवा लिखवा कर इन में रख दी थीं। परंतु खंभायत का भाण्डार तो सारा, एक ही श्रावक ने अपनी ओर से तैयार करवाया था। इस का नाम धरणाक था। यह परीक्षगोत्रीय और इस के पिता का नाम गूजर तथा पुत्र का नाम साइया था। इस की लिखाई हुई पुस्तकों के अन्त में निम्नलिखित प्रशस्ति लेख है।
" सं० १४९० वर्षे चैत्रसुदिपंचम्यां तिथौ रविवारे श्रीमति श्रीस्थंभतीर्थे अविचलत्रिकालज्ञाज्ञापालनपटुतरे विजयिनि श्रीमत्खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे लब्धिलीलानिलयबन्धुरबहुबुद्धिबोधितभूवलयकृतपापपूरपलयचारुचारित्रचंदनतरुमलययुगप्रवरोपममिथ्यात्वतिमिरनिकरदिनकरप्रसरसमश्रीमद्गच्छेशभट्टारकश्रीजिनभद्रसूरीश्वराणामुपदेशेन परीक्ष्य सा. गूजरसुतेन रेखाप्राप्तसुश्रावकेन सा० परीक्ष्य धरणाकेन पुत्र सा० साइ. यासहितेन श्रीसिद्धान्तकोशो लेखितः स्वश्रेयसे । "
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