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भाण्डागारे श्रीबृहत्कल्पटीका स्वपितृसा० जिणराजपुण्यार्थं लेखयांचक्रे
साधुजनैर्वाच्यमाना चिरं नन्दतात् ।
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" संवत् १४८१ वर्षे सिन्धुमण्डलवास्तव्य सा० घेरू पुत्र सं ० सोमकेन सा० अभयचंद्र सा० रामचंद्र प्रमुख पुत्रपौत्रादियुतेन श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरि सुगुरूणामुपदेशेन श्रीआवश्यकवृत्तिटिप्पन कं लिखापितं वाचंयमैर्वाच्यमानं चिरं नन्दतात् ।
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" संवत् १४८८ वर्षे पौषसुदिषष्ठयां सोमे अद्येह श्रीपत्तने खरतरगच्छे श्री श्रीजिनभद्रसूरिविजयराज्ये भाण्डागारे ज्योतिष्करण्डकटिका लिखापिता । मंत्रिबहुलाकेन प्रतिः शुद्धा कृता ॥
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इस प्रकार बहुत सी पुस्तकों के अन्त में स्मरण - लेख दिये हुए हैं। ऊपर जो मैं ने अष्टलक्षी के प्रशस्ति-पद्य में गिनाये हुए पांच भाण्डारों के सिवा तीन और भाण्डारों का उल्लेख किया है वह ऐसे ही प्रमाणों के आधार से लिखा गया है । पाटन के इसी भाण्डार में कितनीक पुस्तकें हैं जो आशापल्ली या कर्णावती के भाण्डार में समर्पित की गई थीं। उन्हें पीछे से कोई साधु, वहां से पढ़ने के लिये लाया होगा और वे फिर इस जगह रख दी गई होंगी । इन के अन्त में भी ऊपर के से स्मरण लेख दिये हुए हैं और उन में आशापल्ली' का नाम लिखा हुआ है । यथा
१ यह सं. सोमा, सिंधदेश के मम्मणवाहण का रहने वाला था । इसी ने सं. १४८३ में, मरुकोट्ट की यात्रा करने के लिये संघ निकाला था जिस में जयसागर - उपाध्याय भी सम्मिलित थे । ( देखो, विज्ञप्तित्रिवेणि मूल, पृ. २१.)
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२ यह आशापल्ली, जिसका दूसरा नाम कर्णावती भी था, जहां पर अहम - दाबाद वसा है वहां पर थी। इसी के स्थान पर अहमदशाह ने अहमदाबाद है
बसाया
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