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से प्रतिष्ठित साधु और श्रावक इन्हीं की आज्ञा का आदर करते थे इन्हों ने अपने जीवन-काल में, उपदेश द्वारा अनेक धर्मकार्य कर. वाये। कई राजा महाराजाओं को अपने भक्त बनाये । विविध देशों में फिर कर जैनधर्म की समुन्नति करने का यथष्ट प्रयत्न किया। जेसलमेर में संभवनाथ के मंदिर में, संवत् १४९७ का एक बडा शिलालेख है जिस में, इन के उपदेश से उक्त मंदिर के बनने का तथा प्रतिष्ठादि होने का वृत्तान्त है। इस लेख में, इन के गुणों का तथा इन के करवाये हुए धर्मकार्यों का संक्षिप्त उल्लेख करने वाला एक 'गुरुवर्णनाष्टक ' है । इस अष्टक के अवलोकन से, इन के जोवन का अच्छा परिचय मिलता है । देखिए, " ये सिद्धान्तविचारसारचतुरा यानाश्रयन् पण्डिताः ___सत्यं शीलगणेन यैरनुकृतः श्रीस्थूलभद्रो मुनिः। येभ्यः शं वितनोति शासनसुची श्रीसंघदीप्तिर्यतो
येषां सार्वजनीनमाप्तवचनं येष्वद्भुतं सौभगम् ॥ १ ॥ श्रीउज्जयन्ताचलचित्रकूटमाण्डव्यपूर्जा [ ] रमुख्यकेषु । स्थानेषु येषामुपदेशवाक्यान्निर्मापिताः श्राद्धवरैर्विहाराः ॥ २ ॥ अणहिल्लपाटकपुरप्रमुख स्थानेषु यैरकार्यन्त । श्रीज्ञानरत्नकोशा विधिपक्षश्राद्धसङ्घन ॥ ३ ॥ मण्डपदुर्गप्रह्लादनपुरतलपाटकादिनगरेषु । यैर्जिनवरबिम्बानां विधिप्रतिष्ठाः क्रियन्ते स्म ॥ ४ ॥ यैर्निजबुद्ध्यानेकान्तजयपताकादिका महाग्रन्थाः । पाठ्यन्ते च विशेषावश्यकमुख्या अपि मुनीनाम् ॥ ५ ॥ कर्मप्रकृतिप्रमुखग्रन्थार्थविचारसारकथनेन । परपक्षमुनीनामपि यश्चित्तचमत्कृतिः क्रियते ॥ ६ ॥ . छत्रधरवैरिसिंहत्र्यम्बककदासक्षितीन्द्रमहीपालैः (१) । येषां चरणद्वन्द्वं प्रणम्यते भक्तिपूरेण ॥ ७ ॥
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