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________________ कोश जितना लंबा जलमार्ग घेडाओं द्वारा पार कर, सुखपूर्वक, देवपालपुर पत्तन को पहुंचा। वहां के मृदुपक्षीय सं० घटसिंह आदि और खरतरगच्छीय सा० सारंग आदि श्रीमान् श्रावकों ने संघ का बडे भारी समारोह के साथ नगर प्रवेश कराया। यहां पर भी कोठीपुर की तरह सार्धामक वात्सल्य आदि संघ-सत्कार संघपति महा. धर आदि ने अच्छे प्रेम और उत्साहपूर्वक किये। यहां के श्रावकसमुदाय ने उपाध्यायजी को अपने शहर में चातुर्मास रहने के लिये अति आग्रह किया । उपाध्यायजी ने क्षेत्र की योग्यता मुताबिक, मेघराजगणि, सत्यरूचिगणि, कुलकेसरिमुनि और रत्नचंन्द्र क्षुल्लक; इन चार शिष्यों को यहां पर चातुर्मास करने के लिये रख दिये । विविध प्रकार के महोत्सव और पूजादि कार्यों में आनंदपूर्वक १० दिन निर्गमन कर संघ यहां से अपने गांव फरीदपुर की तरफ रवाना हुआ। जाते वक्त रास्ते में जो जो दृश्य देखे गये थे वे ही फिर अब क्रमसे दृष्टिगोचर होने लगे । एवं अविच्छिन्न प्रयाणों द्वारा विपाशा नदी को पीछे छोडता हुआ संघ उसी मैदान में जा पहुंचा, जहां चलते समय, पहला मुकाम किया था । इधर संघ के आने की खबर फरीदपुर में पहुंच गई थी इस लिये गांव के सब लोक स्वागत करने के लिये सामने आये । अच्छे ठाठ से संघ का गांव में प्रवेशोत्सव कराया गया । संघपति सोमा के भाई सा० पासदत्त और हेमा ने नालियर, सुपारी और ताम्बूल आदि दे कर सब नगरनिवासियों और यात्रियों का सत्कार किया। यात्रियों के मुंह से, तीर्थ का माहात्म्य और रास्ते के विविध बनावों तथा दृश्यों का वर्णन सुन सुन कर गांव के लोक भी आश्चर्य और आनन्द में निमग्न होने लगे। इस प्रकार निर्विघ्न पूर्वक यात्रा की समाप्ति हुई और सर्व यात्री पूर्ववत् अपने अपने जीवन-व्यवहार में विचर ने लगे। - कुछ दिन बाद उपाध्यायजी को आह्वान करने के लिये, मम्मणवाहण और मलिकवाहण नामक गांवों के श्रावकसमुदाय एक ही साथ फरीदपुर आये और अपने अपने गांव में ले जाने के लिये बहुत आग्रह करने लगे। फरीदपुर के लोकोंने भी अपने नगर में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003389
Book TitleVignaptitriveni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1916
Total Pages180
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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