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४३ कर ध्वजादण्ड तक, बहु-मूल्य ध्वजापताकाओं से खूब सजाये गये। नाना प्रकार के फल, फूल, पक्वान्न और नैवेद्य भादि पदार्थों के ढेर के ढेर भगवान् के सम्मुख भेंट किये गये। जगह जगह बाजे बजने लगे, नृत्य होने लगे और स्त्रिये मंगल-गीत गाने लगीं । संघपति ने गरीब से ले कर तवंगर तक-सभी को प्रीति-भोजन करवाया। इस तरह यह दिन बडे उत्सव और आनंद में बिताया गया । अष्टमी के दिन, शांतिनाथ के मंदिर में खूब ठाठ-माट से नन्दी की रचना की गई और मेघराजगाण, सत्यरुबिगणि, मतिशीलगणि, हेमकुंजरमुनि
और कुलकेशरिमुनि को उपाध्यायजी ने पंचमङ्गलमहाश्रुतस्कन्ध की अनुज्ञा दी। एवं दशदिन तक नगरकोट्ट में संघ ने स्थिति की। जीदोवीरो आदि वहाँ के श्रावकों ने उपाध्यायजी को चातुर्मास रहने के लिये बहुत कुछ आग्रह किया। ११ चे दिन सकलसंघ इकट्ठा हो कर फिर सभी मंदिरों में गया और गद्गदस्वर से, परमात्मा की प्रार्थना करता हुआ प्रास्थानिक चैत्यवन्दन कर, अपने गाँव की ओर रवाना हुआ । अनेक पहाड़ों, नदियों और जंगलों को पीछे छोडता हुआ गोपाचलपुर-तीर्थ को पहुंचा। वहां पर सं. घिरिराज के बनाये हुए विशाल और उञ्चमंदिर में विराजमान् शांतिनाथ भगवान के दर्शनबंदन किये । ५ दिन तक वहां पर मुकाम किया। वहां से चल कर संघ विपाशा के तट पर बसे हुए नन्दनवनपुर गया, कि जहां पर श्रीमहावीर भगवान् का सुन्दर मन्दिर था । नन्दनवनपुर से कोटिल ग्राम पहुंचा और वहां पर श्रीपार्श्वनाथ की यात्रा की। वहां से फिर कूच कर, पर्वतों के घाटों और शिखरों को उल्लंघ कर कोठीपुर नगर में आया। वहां पर श्रीमहावीरदेव के दर्शन किये। इस गांव में श्रावकों की संख्या बहुत थी इस लिये उनके विशेषाग्रह से संघ को यहां पर दश दिन तक ठहरना पडा । सं. सोमा ने यहाँ पर सारे संघ को प्रीति-भोजन दिया और नाना प्रकार के वस्त्रा भूषणादि द्वारा सार्धामक बंधुओं का सत्कार किया । ११ वे दिन यहां से प्रयाण किया और चलते चलते कुछ दिन बाद, सप्तरूद्र नाम का बडे भारी प्रवाह वाला जो जलाशय है उस के निकट प. हुंचा। यहां से सारा ही संघ नावाओं में सवार हो गया और ४०
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