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________________ त्यक्ष हो रहे हैं।" इस प्रकार वहां के वृद्ध मनुष्य तीर्थ की महिमा का वर्णन कर रहे थे और संघ के मनुष्य प्रेम-पूर्वक सुन रहे थे, कि इतने में, राजा नरेन्द्रचन्द्र ने अपने प्रधान-मनुष्यों को भेज कर संघ सहित उपाध्याय जयसागरजी को बहुमान पूर्वक अपने पास बुलवाये । यह राजा बडा न्यायी, सुशील, सद्गणी और धर्मप्रेमी था। यह विशुद्ध क्षत्रिय था। इस का कुल सोमवंशीय कहलाता था। इस ने सपादलक्ष पर्वत के पहाडी राजाओं का पराजय कर उन्हें गतगर्व किया था। श्वेताम्बर-साधुओं पर इस का बड़ा प्रेम और आदर था। अपने महल में पूर्वजों की स्थापित की हुई आदिनाथ भगवान् की प्रतिमा का यह बहुत उपासक था । राजा के बुलाने पर उपाध्यायजी अपने संघ के साथ उस के सभा-स्थान में पहुंचे । राजा ने अपना मस्तक नीचा नमा कर उपाध्यायजी को प्रणाम किया जिस के बदले में उन्हों ने, निर्ग्रन्थों के खजाना का सर्वस्वभूत ऐसा धर्म लाभ रूप आशीर्वाद दिया । सब के यथायोग्य-स्थान पर बैठ जाने बाद राजा ने कुशल प्रश्नादि पूछ । फिर स्वयं वह उपाध्यायजी के साथ विद्वगोष्टी करने लगा । साथ में और और ब्राह्मण-क्षत्रियादि भी विविध प्रकार के वार्तालाप करने लगे। एक काश्मीरी विद्वान् कुछ देर तक शास्त्रार्थ भी करता रहा । उपाध्यायजी की विद्वत्ता और वाक्चातुरी देख कर राजा आदि सभी सभ्य बहुत खुश हुए और जैन विद्वानों की भूरि भूरि प्रशंसा करने लगे। इस के बाद राजाने अपना निज का देवागार दिखलाया जिस में स्फटिक आदि विविध पदार्थो की बनी हुई तीर्थकर आदि अनेक देवों की मूर्तिये विराजित थीं । इस प्रकार दिवस का बहुत कुछ भाग वहीं पर व्यतीत हो गया। सायंकालीन क्रियाकाण्ड के करने का अवसर प्राप्त हुआ देख उपा. ध्यायजी ने, राजा से, अपने स्थान पर जाने की इच्छा प्रकट की। राजाने, आदर पूर्वक, फिर भी मिलने का निवेदन कर संघकीय मंडली को जाने का आदेश दिया। इस प्रकार जैनशासन का बहुमान करा कर सायंकाल के समय में उपाध्यायजी स्वस्थान पर पहुंचे । सप्तमी के रोज संघ की ओर से नगर और किले में के चारों मन्दिरों में महा-पूजा रचाई गई । मन्दिरों को, गर्भागार से ले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003389
Book TitleVignaptitriveni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1916
Total Pages180
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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