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इन भाईयों ने अपने सिर पर चढाया और नगरकोट्ट का संघ निकालने की तैयारी करने लगे। अपने आसपास के क्षेत्रों के महाजनों को निमंत्रण देने के लिये आह्वान-पत्र भेजे गये और उन का सम्मान करने के लिये यथायोग्य प्रबन्ध करने लगे।
इसी बीच में माबारषपुर, कि जहां १०० घर श्रावकों के थे, के कुछ लोक उपाध्यायजी को अपने गाँव में ले जाने के लिये आए। उनकी इच्छा से उपाध्यायजी थोडे दिन के लिये वहां पर गये । फरीदपुर की तरह वहां भी धर्मोपदेश द्वारा अनेक लोकों को सन्मागेगामी बनाये । सा० शिवराज नामक श्रावक ने अपने पिता हरि. चन्द्र सेठ के साथ बड़ा संघवात्सल्य किया और बड़े भारी ठाठ-माट के साथ आदिजिन की प्रतिमा की प्रतिष्ठा उपाध्याय श्रीजयसागरजी के हाथ से करवाई। इस प्रसंग पर फरीदपुर के सा० रामा, सा० सोमा, सा० हेमा, सा० देवा और दस्सू आदि श्रावक लोक भी आये और कार्य की समाप्ति बाद उपाध्यायजी को वापस अपने गांव में ले गये । वहां पर पहुंचे बाद ज्योतिषी को बुलाया और नगरकोट्ट तरफ जाने के लिये संघ के प्रस्थान का मुहूर्त निकलवाया। उस के बताये हुए शुभ मुहूर्त वाले दिन अच्छे ठाठ-माट से, सा० सोमाके संघ ने प्रस्थान-मंगल किया।
संघ को चलते समय बहुत अच्छे और अनुकूल शकुन हुए। फरीदपुर से थोड़ी ही दूरी पर विपाशा (व्यासा) नदी थी जिस के किनारों पर जम्ब, कदम्ब, नीम्ब, खज़र आदि वृक्षों की गहरी घटा जमी हुई थी और जहां पर नदी के कल्लोलों से ऊठी हुई ठंडी वायु मन्द मन्द रीति से चली आती थी; ऐसे चांदि के जैसे चमकिले रेती के मैदान में संघ ने अपने प्रयाण का पहला पडाव किया । दूसरे दिन नदी को उतर कर जालन्धर की ओर संघ चला। संघ में सब से आगे सिपाही चलते थे जो मार्ग में रक्षण निमित्त लिये गये थे। सिपाहियों में से किसी के हाथ में तलवार थी तो किसी के हाथ में खड्ग था। कोई धनुष्य ले कर चलता था तो कोई जबरदस्त लट्ठ
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