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फर आ कर, उपाध्यायजी के सामने खडा हुआ और कुछ प्रणाम कर उन के आगे बैठ गया । उपाध्यायजीने उस की आकृति ऊपर से जाना कि यह कोई भला आदमी और तीर्थयात्रिक है । इस से उन्हों ने उस मुसाफर से पूछा, कि-"भाई तुम कहां से आये हो और किन किन तीर्थों के दुम ने दर्शन किये हैं ? । जो विविध देशों में फिरने वाले होते हैं वे अनेक अपूर्वापूर्व स्थानों को देखा करते हैं, इस लिये तुमने जो कोई अपूर्व स्थान या बात देखी सुनी हो तो कहो और हम लोकों का दिल खुश करो।" उपाध्यायजी के इन वचनों को सुन कर मुसाफर खुश हुआ और कहने लगा, कि-"सुनि ए, एक अपूर्व तीर्थ का पता बतलाता हूं।"
“ उत्तर दिशा में त्रिगर्तनाम का देश है जिस में अनेक अच्छे अच्छे तोर्थस्थल हैं । उन में सुशर्मपुर नाम के नगर में श्रीआदिनाथ भगवान का जो तीर्थ है वह सब से अधिक पवित्र और महान् है। वह धाम अनादि है। इस वर्तमान कलि काल में, अब कि सब देशों में म्लेच्छो-मुसल्मानों के अत्याचारों से तीर्थ स्थल नष्ट-भ्रष्ट हो गये हैं तब भी वह तीर्थ अखण्डित है । उस के वर्णन करने की मुज मंदबुद्धि में ताकात नहीं। जिसने उस तीर्थ के दर्शन कर लिये उसे फिर औरों के दर्शन की जरूरत नहीं । मैं तो उस तीर्थ की उपासना कर अपने आत्मा को धन्य मानता हुआ यहां पर आया हूं। बस, यही मैंने अपूर्व देखा है और उसे आप लोकों को संक्षेप में कह सुनाया है। मुझे अभी बहुत दूर जाना है, इस लिये मैं चलता हूं।" इतना कह कर वह यात्री रवाना हो गया । यात्री से इस वृत्तान्त को सुन कर वहां पर बैठे हुए उपाध्यायजी और उन के श्रोताजनों का चित्त चमत्कृत हुआ। उस महातीर्थ की यात्रा कर अपने जीवन को कृतार्थ करने की उत्कण्ठा, उन के मन में प्रबल हो ऊठी।
उस नगर (फरीदपुर ) में राणा नामक सेठ के सोमचंद्र, पार्श्वदत्त और हेमा नाम के तीन पुत्र थे जो धनाढ्य हो कर बड़े भावुक थे । उपाध्यायजीने अपनी तीर्थ दर्शनेच्छा इन भ्राताओं को जनाई और यात्रा कराने का उपदेश दिया । उपाध्यायजी के उपदेश को
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