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विज्ञप्ति - त्रिवेणि ।
स प्रबन्ध की यह प्रस्तावना लिखी जा रही है उस का नाम विज्ञप्तित्रिवेणि है । ऊपर जिन विज्ञप्ति पत्रों का हाल दिया गया है, यह विज्ञप्तित्रिवेणि भी उन्हीं में का एक पत्र है । ऊपरि वर्णित पत्रों की अपेक्षा यह विशेष महत्त्व का है । इस में केवल आलंकारिक वर्णन ही नहीं है परंतु एक विशेष प्रसंग का सच्चा और संपूर्ण इतिहास भी है । ऐसा पत्र अभी तक पूर्व में कोई नहीं प्रकट हुआ। इस प्रकार के पत्रों के अस्तित्व की भी किसी को खबर नहीं है । अर्थात् यह एक बिल्कुल नई ही चीज प्रकट होती है। ऐसी दशा में, इस अपरिचित वस्तु का सर्वसाधारण को परिचय कराने के लिये विज्ञप्ति पत्रों के लिखने का मुख्य कारण और उन के स्वरूप आदि के विषय में विस्तृत उल्लेख करने की आवश्यकता थी । इसी आवश्यकता का विचार कर इस भूमिका को इतनी लंबानी पड़ी है और जुदा जुदा पत्रों में से इतने बहुसंख्यक और विस्तीर्ण अवतरण देने पड़े हैं । अब इस प्रकृत पत्र की ओर दृष्टि दी जाती है और इस में उल्लिखित विषय तथा लेखकादि का परिचय कराया जाता है ।
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यह पत्र विक्रम संवत् १४८४ के माघ सुदी १० मी के दिन का लिखा हुआ है । इसे, सिन्धदेश के मलिकवाहण नामक स्थान से, श्रीजयसागर उपाध्याय ने खरतरगच्छ के आचार्य श्रीजिनभद्रसूरिजो उस समय गुजरात के अणहिलपुरपाटण में ठहरे हुए थे- की सेवा में भेजा था । पत्र बड़ी अच्छी आलंकारिक भाषा में सुन्दररूप से लिखा गया है । पढते समय वृत्तान्त के साथ काव्य का भी कुछ कुछ आनन्द आता है । लेखक ने इस में गद्य और पद्य दोनों का उपयोग किया है जिस से और भी इस की पठनीयता बढ़ गई है। बीच बीच में कोई कोई पद्य तो बहुत ही अच्छे लालित्यवाले हैं। साथ में छत्र और पद्मबन्धादि चित्र पद्यों को भी स्थान दिया है । संघ
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