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* विज्ञप्तिपत्रों की प्राचीनता ।
इस प्रकार के विज्ञप्तिपत्र कब से लिखे जाने लगे इस का कोई ऐतिह-प्रमाण नहीं मिलताः परन्तु अनुमान होता है कि यह प्रथा बहुत पुराणी होगी। ___ मेरे देखने में जितने पत्र आये हैं उन में जो सबसे पुराणा है वह विक्रम की १३ वीं शताब्दी के मध्यका लिखा हुआ है। यह पत्र कागज पर नहीं परंतु ताडपत्र ऊपर है। (हिदुस्थान में जब कागज का प्रचार न था अथवा बहुत कम था तब अन्यान्य पुस्तक प्रबंधादि की तरह, मनुष्यों का परस्पर पत्रव्यवहार भी ताडपत्रों पर ही चलता था।)इसका केवल एक ही-मध्य का पत्र-मिला है। यह पाटन के भाण्डार के रद्दी
और खंडित ताडपत्रों में से-जो नष्ट-भ्रष्ट हुए पडे थे-उपलब्ध हुआ है। यह पत्र चंद्रकुल के आचार्य भानुप्रभ के पास, वडउद्र (बडौदा) ग्राम से, प्रभाचंद्र गणि ने भेजा था।उपलब्ध पत्र में केवल गद्य ही गद्य है,पद्य नहीं। इस का गद्य बहुत सरस और सुन्दर है। रचना सालंकारिक और सरल है। पढते समय कादंबरी और तिलकमंजरी की पंक्तियों का आभास हो आता है । पाठकों के अनुभवार्थ कुछ सतरें इसकी भी टांकी जाती हैं।
परिस्फुरच्चारुचन्द्रार्कमण्डलसमुच्छलदतिबहलकिरणजालजलकल्लो. लमालिनि, अभ्रंकषाशखरलोकालोकभूधरप्रौढपालिनि, परिभ्रमत्तारानिकरसञ्चरद्विविधवयसि, जगल्लीलासरसि, सकलविवेकिजनमनःकमलवनेषु, विकाशैकसदनेषु, सततं वसन्ति । विपक्षकीर्तिकुमुदिनीकन्दग्रासलालसाः, अन्यत्र गमनालसाः, निखिलनिर्मलाव तसाः, यद्गुणराजहंसाः । असाधारणश्रीकुलमन्दिरम् , आश्रितदूरास्तकण्टकोत्करम्, अपास्तसमस्तजाड्याडम्बरम्, रात्रिंदिवं सविशेषोन्मेषप्रवरम्, विशुद्धपक्षालिसेव्यमानम्, सदामोदविधानप्रधानम्, समग्रराजहंसकृतपक्षपातम्, विकाशितगोपतिवातम्, सर्वातिशायिवैभवसम्भवनिर्मलम्, यदीयपदकमलं विलोक्य
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