________________
ते तत्थ सुहमणुटिअपज्जोसवणाइविविहसुअजोआ । प्रणमन्ति विनयविनताः श्रीगुरुचरणान् भुवनशरणान् ॥ ७५ ॥ अवि इत्थ सडसडीसंघो सयलो वि नमइ गुरुचरणे । श्रीवीरपट्टवीथीकल्पद्रुमसमगुरुप्रहः ॥ ७९ ॥ अहमित्थ पइदिणं चिय सिरिगुरुसमहिटिएण हियएण । प्रणमामि जिनाधीशांश्चन्द्रप्रभनेमिवीरादीन् ॥ ७७ ।। तुझाण मारिसया सीसा बहुआ वि पज्जुवासंति । अयमपि शिशुस्तथापि स्मर्तव्योऽर्हत्प्रणामादौ ॥ ७८ ॥
आसोअबहुलपक्खे धण्णाए धणतेरसीइ दिणे ।। विनयेन निजगुरूणां लिखिता विज्ञप्तिरिति भद्रम् ॥ ८२ ॥
* सब से बड़ा विज्ञप्ति पत्र । VHD तपागच्छ में जो अनेकानेक विद्वान् और विश्रुत आचार्य हो गये हैं उन में एक मुनिसुन्दरसूरि नाम के आचार्य भी हैं । ये बड़े प्रतिभाशाली और प्रभावक महात्मा हो गये हैं । ये सहस्रावधानी और सिद्धसारस्वत कविथे। इन्हों ने बारह-चौदह वर्षजितनी छोटी उम्र में ही एक “ विद्यगोष्ठी" नाम का ग्रंथ लिखा है जिस में न्याय, व्याकरण, काव्य, साहित्य, छंद, और अलंकार आदि विषयों संबंधी अपनी अप्रतिहतगति का अच्छा परिचय दिया है । विक्रम संवत् १४६६ में, इन्हों ने जो विज्ञप्ति पत्र अपने गुरु (आचार्य) श्रीदेव. सुन्दरसूरि की सेवा में भेजा था , वह विज्ञप्तिपत्रों के साहित्य और इतिहास में सब से अधिक महत्त्व रखता है । इस पत्र के जैसा विस्तृत और प्रौढ पत्र अन्य किसी ने नहीं लिखा । यह पत्र १०८ हाथ जितना लंबा था ! इस में एक से एक विचित्र और अनुपम ऐसे सेंकडों चित्र और हजारों काव्य लिखे गये थे । महोपाध्याय
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org