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इन्दुदूतादि पत्रों के उद्धृत किये गये इन बहु-संख्यक पद्यों के अवलोकन से पाठकों को मुनियों के विज्ञप्ति-लेखों का स्वरूप पूर्ण तया ज्ञात हो गया होगा। और यह भी ध्यान में आ गया होगा कि ये पत्र कैसे महत्व के और अवलोकनीय होते हैं। मेरे पास जो पत्र हैं वे एक से एक बढिया और देखने लायक हैं परंतु कहां तक उन का उल्लेख किया जायँ । उपर्युक्त वाचक विनयविजयजी का एक दुसरा पत्र है जो संवत् १६९४ की साल का लिखा हुआ है । यह पत्र, उपाध्याय जी ने बारेजा नामक गाम-जो अमदाबाद के पास है-से खंभात में, श्रीविजयानंदसूरि की सेवा में भेजा था। इस पत्र के भिन्न भिन्न अभिधान वाले पाँच अधिकार हैं । इन अधिकारों में, अनेक तरह का वर्णन है जो काव्यप्रेमियों के मन को मुग्ध बनाता है। चित्र. काव्य और विविध छन्दों का तो मानों एक छोटा सा संग्रही है। इन्हीं का एक और तीसरा पत्र है, जो इन्हों ने देवपत्तन (प्रभासपाटण ) से, अणहिल्लपुर-पाटन में श्रीविजयदेवसरि के समीप भेजा था। इस के पद्यों का आदि भाग प्राकृत में और उत्तरार्ध संस्कृत में है।
इस का भी कुछ नमूना लीजिए। धीजिन वर्णन
सत्थिसिरिकमलिणीगहणदिणणायगं
नेमिजिणणायगं सिद्धिसुहहायगं । यमतिभक्तिस्फुरत्पुलकदन्तुरतनु
नकिनिकरो नमत्यमलमतिवैभवः ॥ १ ॥ जेण सुहसीलवम्मेण वम्महभडो __ जति मुसुमूरिओ जइवि अइउब्भडो। चित्रमिह किमतनोः परिभवे दोष्मता
बलपरीक्षाविलुप्ताच्युतास्यत्विषा ॥२॥
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