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________________ दौलताबाद से ८-९ मैल के फासले पर ईलोरा का प्रसिद्ध पहाड़ है जो गुफामन्दिरों के कारण विश्व-विख्यात हो रहा है। यहां के जैसे मनोहर और आश्चर्यजनक गुफामन्दिर, जो पहाड में से पत्थर काटकर बनाये गये हैं, अन्यत्र बहुत कम दिखाई देते हैं। इन गुफामन्दिरों में भारतीय सभी देव-देवियों की मूर्तियें विद्यमान हैं। यहां पर, सब मिला कर कोई ३४-३५ गुफामन्दिर हैं जो लगभग मैल सवा मैल जितने विस्तार में बने हुए हैं। इन मन्दिरों में १२ बौद्धों के १७ हिन्दुओं के और ५ जैनों के हैं । जैन-मन्दिरों में बड़ी ही भव्य और विशाल जिनमूर्तिये स्थापित हैं, जिनमें से कुछ पद्मासन लगाये बैठी हैं और कुछ कायोत्सर्ग धारण कर खडी हैं। मेघविजयोपाध्याय ने अपने दूत मेघ को, देवगिरि से इस ईलोरा के पहाडको हो कर और वहां के जैनमंदिर में विराजित पार्श्वनाथ-देव को नमः स्कार कर फिर आगे को जाने का कहा है । इत्येतस्मान्नगरयुगलाद्वीक्ष्य केलिस्थलं त्व मीलोराद्रौ सपदि विनमन् पार्श्वमीशं त्रिलोक्याः । भ्रातः ! प्रातव्रज जनपदस्त्रीजनैः पीयमानो . मन्दायन्ते न खलु सुहृदामभ्युपेतार्थकृत्याः ॥ ४२ ॥ ईलोरा के आगे का रास्ता बताते हुए लेखक ने मेघ से कहा है, कि वहां (ईलोरा) से चले बाद, तूं नाना प्रकार के पहाडों और नगरों को लांघता हुआ अणकिटणकी के पर्वत पर पहुंचना और जल्दी होने पर भी, थोडे से समय तक वहां पर अवश्य ठहरनाक्यों कि पूर्व काल में श्रीपार्श्वनाथ भगवान् वहां पर विचरे थे इस लिये वह स्थल अति पवित्र है । वहां से उड कर फिर तुङ्गिआ. शैल पर-जिसे आज कल मांगी-तुंगी का पहाड कहते हैं-जाना और उस के शिखर पर विराजमान तथा पशुओं के भी प्रबोधक ऐसे श्रमण-भगवान् को (तीर्थकर देव की प्रतिमा को ) अपनी जलधारा से सिंचन कर फिर गर्जना द्वारा वहां के पक्षियों को खूब नचाना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003389
Book TitleVignaptitriveni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1916
Total Pages180
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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