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नीत्वा मासान् कतिचिदचिराद्वाचिकं नेतुकामः । भाद्रे पञ्चम्युदयदिवसे मेघमाश्लिष्टसौधं
वप्रक्रीडापरिणतगजप्रेक्षणीयं ददर्श ॥ २ ॥ मत्वा तस्याऽभ्युदयनदशां वायुनोन्नीयमानां
चेतो वाचं झटिति गमनापेक्षमूचेऽस्य साधोः । प्रत्यासन्नेऽप्ययि ! तव गुरौ कार्यकार्यस्ति योगः
कण्ठाश्लेषप्रणयिनि जने किं पुनर्दूरसंस्थे ॥ ३ ॥
यह ज़माना औरंगजेबी था इस लिये भारत में सर्वत्र अरा. जकता और अशांति फैली हुई थी। मनुष्यों को एक प्रदेश में से दूसरे प्रदेश में जाना बड़ा कठिन और भयप्रद था। कविने इस बात का ज़िक्र बड़े ही अच्छे ढंग से कर दिया है।
जज्ञे भूमावतिविषमताऽन्योन्यसाम्राज्यदौस्थ्या___ कश्चिन्मां नो नयति यतिनामीशितुर्चिवार्ताम् । तत्त्वां याचे स्ववशमवशासृष्टविश्वोपकारं
याच्या मोघा वरमधिगुणे नाधमे लब्धकामा ॥ ६ ॥ १० वे काव्य से २२ में काव्य तक शान्तिनाथ तीर्थकर का वर्णन कर, फिर १२ काव्यों में औरंगाबाद का वर्णन किया है।
औरंगाबाद से पूर्व दिशा में ८-१० मैल पर इतिहास प्रसिद्ध देवगिरि नगर-जिसे आज कल दौलताबाद कहते हैं-है । इस का भी कवि ने ५-६ पद्यों में अच्छा वर्णन किया है।
अस्याः प्राच्या सुभगभगिनी देवगिर्याह्वयास्ति
पूर्व प्रत्याश्रयमिह चिरं तस्थिवान् रामचन्द्रः। सस्नौ स्नेहादिह जनकजा लक्ष्मणः केलिमाधा
दित्यागन्तून् रमयति जनो यत्र बन्धूनभिज्ञः ॥ ३५॥
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