SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकरणों में नाना जाति के छंद तथा यमक, अनुप्रास और चित्रादि विविध अलंकारों का समावेश किया गया है। कोई पत्र कवि कुलगुरु कालिदास के मनोहर काव्य मेघदूत की छाया ले कर बनाया गया है तो कोई उस की पादपूर्ति ले कर लिखा गया है । ये पत्र इतने बड़े हैं कि उन में से एक को भी यहां पर पूर्ण तया उद्धृत नहीं कर सकता तथापि पाठकों के अवलोकनार्थ एक-दो पत्रों के कुछ कुछ अंशों के देने का लोभ, मैं संवरण नहीं कर सकता। विज्ञ-वाचक इतने ही से, इन पत्रों के वास्तविक स्वरूप से ज्ञात हो सकेंगे। * महोपाध्याय श्रीविनयविजयजी का इन्दुदूत।* वाचक श्रीविनयविजयजी बहुत अच्छे विद्वान् हो गये हैं । ये सुप्रसिद्ध जैन-नैयायिक श्रीयशोविजयजी के समकालीन और सहाध्यायी थे । इन्हों ने लोकप्रकाश, कल्पसुबोधिका और विस्तृत वृत्तिसहित हैमलघुप्रक्रिया आदि अनेक बड़े ग्रंथोंकी रचना की है। ये एक समय अपने बहुत से शिष्यों के साथ मारवाड के जोधपुर नामक सहर में चातुर्मास रहे हुए थे। थोड़े ही दिनों के बाद, जैनधर्म का परम पवित्र पर्युषणापर्व आ उपस्थित हुआ। चतुर्विध संघ के साथ उपाध्यायजीने पर्वाराधन कर महावीरदेव की आज्ञा का पालन किया। पर्युषणापर्व के समाप्त हुए बाद भिन्न भिन्न स्थानों पर से क्षमापना के पत्र आने जाने लगे। उपाध्यायजी भी अपने आचार्य के पास विज्ञप्ति-लेख भेजने का विचार करने लगे। जो उच्चपंक्ति के विद्वान् होते थे वे अपने विज्ञप्ति-लेख प्रतिवर्ष एक ही जैसे न लिख कर भिन्न भिन्न ढंग से लिखा करते थे। वाचक श्रीविनयविजयजी भी इस वर्ष के विज्ञप्तिपत्र का कोई नया ढंग सोच रहे थे कि इतने में, भादों सुदी पूर्णिमा की रात्रि को, उपाश्रय की छत ऊपर से पूर्वदिशा तरफ, पर्वत के शिखर ऊपर, पूर्ण. चंद्र देख पडा । रजनीनाथ हिमरश्मि के नयनानंदकर बिंब को देख कर कवि के हृदय में नाना प्रकार के कल्पना-तरंग ऊठने लगे । इन तरंगों को मूर्त और स्थायि रूप देने के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003389
Book TitleVignaptitriveni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1916
Total Pages180
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy