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प्रस्तावना।
Is ठकों के हाथ में जो पुस्तक विद्यमान है इस में कोई AAS किसी प्रकार के शास्त्रीय या सामाजिक विषय का
का वर्णन नहीं है परन्तु लगभग ५ सौ वर्ष पहले, उपाध्यायपद-धारक एक विद्वान् जैन-यति की ओर से, गच्छाधिपति आचार्य के पास, उन की आज्ञा और इच्छानुसार एक विशेष-प्रसंग संबंधी लिखा हुआ वृत्तान्त है। अत एव यह कोई ग्रंथ नहीं है परन्तु अलंकृत रूप से लिखा हुआ विस्तृत संस्कृत पत्र है।
* पर्युषणा-पर्व और विज्ञप्ति-पत्र । जैन धर्म में पर्युषणापर्व बडा महत्त्ववाला गिना जाता है । यह पर्व भादों मास में आता है और भादों वदि (गुजरात के हिसाब से श्रावण वदि ) १२ से ले कर भादों सुदि ४ पर्यंत के ८ दिन तक यह मनाया जाता है । इन आठ दिनों में जैन लोक किसी भी प्रकार का सांसारिक कार्य नहीं करते । केवल शास्त्र के वाचन-श्रवण में और तपश्चरणादि आत्मोद्धारक पुण्यकार्यों के करने में ये दिन बिताये जाते हैं । इस अष्टाह्निक पर्वका अंतिम दिन जो सांवत्सरिक के नाम से प्रसिद्ध है, वह इन आठ दिनों में भी सब से पवित्र और महान् माना जाता है । इस दिन तो छोटे से ले कर वृद्ध पर्यंत के सभी श्रद्धालु और भावुक लोक अन्न-जल का भी त्याग कर देते हैं । और केवल आत्मतत्त्वचिन्तन के सिवा किसी प्रकार का आलापसंलाप तक भी नहीं करते। जैनशास्त्रों में लिखा है कि इस सांवत्सरिक दिन के सायंकाल समय में, हर एक जैन को, वर्षभर में किये हुए सुकृत्यों का अनुमोदन और दुष्कर्मों का आलोचन कर विशुद्ध-परिणामी
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